ब्रिटेन ने काफी बदला ले लिया। ऐसी अवस्था में बड़े लाट का यह कहना असह्य हो जाता है कि, "इस नई सन्धि की शर्तों के अनुसार वह पुरानी मैत्री पुन: जन्म ग्रहण करेगी और नये भाव
तथा नई आशा से पल्लवित तुर्की भूतकाल की भांति भविष्य में भी इस्लाम धर्म का संरक्षक बना रहेगा ।" अपने सूचनापत्र के
अन्तिम भाग को लिखने में बड़े लाटने भारी उद्दण्डता दिखाई है।
उन्होंने लिखा है:---"मुझे पूरी आशा है कि इन बातों का ख्याल
करके आपलोग बिना किसी प्रकार के असन्तोष दिखाये सन्धि की
शर्तो को स्वीकार कर लेंगे और पूर्ण साहस तथा उदारता के
साथ पहले की भांति साम्राज्य में आशा और विश्वास रखेंगे ।"
यदि मुसलमानों की राजभक्ति निष्कलंक रह जाय तो इसका
कारण यह नहीं होगा कि भारत सरकार ने उसको तोड़ डालने के
लिये काफी बोझ नहीं लादा बल्कि इसलिये कि मुसलमानों को
अपनी शक्तिपर भरोसा है। वे समझते हैं कि हमारी मांग
न्यायपूर्ण हैं और हम न्याय करवा लेंगे यधपि अपने प्रधानमन्त्री-
की बात में आकर ग्रेट ब्रिटन ने अपना वचन तोड़ दिया ।
इससे स्पष्ट है कि सन्धि की शर्तों में तथा बड़े लाटके सूचना- पत्र में ऐसी कोई बात नहीं है जिससे सम्पूर्ण भारतीयों में---
विशेषकर मुसलमानों में---किसी तरह के आशा या विश्वास,
साहस या उत्साह का जन्म हो फिर भी निराश होने या क्रोध
प्रगट करने का कोई कारण नहीं है । यही समय है कि मुसलमान लोग पूर्ण आत्मसंयम से काम लें, अपनी शक्ति का संग्रह