पृष्ठ:यंग इण्डिया.djvu/४६७

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काण्डलरकी खुली चिट्ठी ।

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( मई २६, १९२० )

मिस्टर काण्डलरने खिलाफतके प्रश्नपर मेरे पास एक खुली चिट्ठी लिखी है। पत्र प्रकाशित हो चुका है। मिस्टर काण्डलरने अपने पत्रमे यह प्रमाणित करनेकी चेष्टा की है कि मिस्टर लायड जार्जने अपने वचनको भङ्ग नहीं किया है। उन्होंने लिखा है कि मिस्टर लायड जाजेके वचनोंपर प्रासंगिक विचार करना चाहिये अर्थात् प्रसङ्गसे हटाकर मुसलमानोंकी तरफदा. रोके लिये उनपर विचार नहीं करना चाहिये। मैं भी मिस्टर काण्डलरके इस मतसे सहमत हूं। मिस्टर लायड जार्जके वचन क्या है, उनका अवतरण बड़े लाटने अपने एक सन्देशमें किया ‌।वे ये है:---

"हम लोगोंने युद्ध में भाग इसलिये नहीं लिया है कि हम लोग आस्ट्रिया हंगरीका नाश कर दे अथवा तुर्कोसे उनकी राजधानी छीन लें अथवा एशिया माइनर तथा सके समृद्ध प्रान्तोंसे तुर्कों को निकाल दें क्योंकि उन्हें प्रकृतिने तुर्कों के लिये ही रचा है।" मेरी समझमें मिस्टर काण्डलरने (हृवच---जो) 'हिवच' शब्दका अर्थ “जो" न लगाकर ( हिवच = इफ दे) 'अगर वे' लगाया है। पर मैं उस सर्वनामसे उसका असली अर्थ निकालकर यह कहनेकी धृष्टता करता हूं कि १९१८ में प्रधान