(२) दूसरे इतराज में कोई विशेष दम नहीं है इसलिये उसका निपटारा सहज में ही किया जा सकता है । अमरीकाके विषय में तो ये बातें नहीं कहीं जा सकतीं। तब कौन शक्तियां रह गई जिनकी गणना मित्रराष्ट्रों में रह जाती है ? सम्भवत उत्तर मिलेगा फांस और इङ्गलैण्ड । प्रत्येक मुसलमान का यह विश्वास है कि इस युद्ध में तुर्को का जानी दुश्मन फ्रांस न होकर इङ्गलण्ड हो रहा है। जिस राष्ट्रीयता, राजनीतिज्ञता और उपयोगिताके सिद्धान्त की घोषणा की जा रही है उसका आधार कदाचिन ब्रिटनके ध्यानमें वे ही बातें हो जिनकी चर्चा रूसके जारने की थी । पर प्रधानमन्त्री ने अपनी घोषणामें अधिकार के साथ कहा था कि मैंने उस अनुपयोगी नीतिका त्याग कर दिया है। ऐसी अवस्था में प्रधान मन्त्रीकी बातोंमें मुसलमानों को विश्वास कर लेना स्वाभाविक था।
(३) इस प्रश्नसे हम लोग प्रधान मन्त्रीकी प्रतिज्ञापर एक बार
पुनः आते हैं। टाइम्ल आफ इण्डिया पत्र के संवाददाता ने प्रतिज्ञा के जिन दो अंशों को उद्धत किया है उनमें किसी तरह का विरोधाभास नहीं देखने में आता। राष्ट्रपति विलसनके १४ सूत्रों में से बारहवे सूत्र मे दोनों बाते आ जाती हैं। उसमें लिखा है:---
तुर्को साम्राज्यका जो अंश इस समय तुर्को के हाथमें है वह उन्हें
सुरक्षित मिल जाना चाहिये । पर अन्य जो जातियां इस समय
तुर्कों के अधीन हैं उनके जानमाल की रक्षाको प्रबन्ध तथा उनकी
वाधारहित उन्नतिकी व्यवस्था कर देनी चाहिये । और दर्रेदानि.