व्यवहार नहीं किया जा रहा है। हमने उस तर्ककी निस्सा.
रनाको भली भांति प्रमाणित कर दिया है। उन राष्ट्रों के साथ
किस सिद्धान्तपर व्यवहार किया गया है ? क्या तुर्कों के लिये भी
उसी सिद्धान्त का प्रतिपादन किया जायगा ? महात्मा गांधीजी ने
मिस्टर काण्डलर के पत्र में यही प्रश्न किया था। यदि उन राष्ट्रों के
साथ प्रजा को मत देने की स्वाधीनता के सिद्धान्तों का प्रयोग
हुआ है तो यही सिद्धान्त तुर्की के साथ भी क्यों नहीं चलाया
जाता ? उन राष्ट्रोंका विभक्तीकरण प्रजा के मन देने की स्वाधीनता के सिद्धान्तपर हुआ है। पर तुर्की की हालत में वही 'प्रजा.
को मत देने की स्वाधीनता का ही सिद्धान्त, विभक्तीकरण के प्रतिकूल हो जाता है।
असल बात यह है कि मुसलमान लोग केवल राष्ट्रीयता के
सिद्धान्त का पूर्ण प्रयोग चाहते हैं। उनका कहना है कि जिन
प्रान्तों में मुसलमानों की आबादी अधिक है उन प्रान्तों को गैर
मुसलमानी शासन के अधीन कर देना नितान्त अनुचित और
अन्याय पूर्ण है। उनका कहना है कि क्या इस तरह की कोई
कार्रवाई राष्ट्रीयता के सिद्धान्त के अनुकूल होगी ? पर इस प्रश्नपर
किसी भी विचारवान राजनीतिक्ष ने कुछ कहने का साहस नहीं
किया है। कुछ दिन हुए राष्ट्रपति विलसन के पास कुछ कागज-
पत्र भेजे गये थे। उन कागजोंमें इस प्रश्नपर पर्याप्त वादविवाद
हुआ था। इसलिये सर्वोत्तम बात यही होगी कि हम यहांपर
उन्हीं बातोंका संक्षिप्त विवरण दे दें। ईसाई राज्योंका कहना