शाके भीतर ही है और साथ ही शत्रु (विजित ) शक्तियोंकीमांगोंसे भी उनकी मांगे अधिक नहीं हैं।
जिस नोटके ऊपर टाइम्स आफ इण्डियाने २० दिसम्बर १६१६ के अंकमें लेख लिखा था उसका अनुवाद नीचे दिया जाता है:--
टाइम्स आफ इण्डिया पत्रमे तुर्कीके प्रश्नपर कामन्ससभामें जो वादविवाद हुआ था उसका विवरण निकला है। उस बैठ-कमें मिस्टर बाल फोरने कहा था:-तुर्की साम्राज्यका अन्तिम निर्णय क्या होगा इसके सम्बन्धमे मैं अपना मत अभी नहीं 'पाट कर देना चाहता पर मै इतना साहसके साथ कह सकता है कि तुर्कीक सद्श प्राचीन जातिका, सन्धिपरिषदकी किसी भी व्यवस्थाके अनुसार मटियामेट नहीं कर दिया जा सकता। तुकोंका अतीत उज्वल और प्रकाशमय है। वे आज भी उसी तरह मौजूद हैं। यदि आत्मनिर्णय और राष्ट्रीयताका वही अर्थ और अभिप्राय है जो कुछ हमने समझा है और जो हमें सम-झाया गया है और यदि उसको चरितार्थ करना है तो मैं दावेके साथ कह सकता हूं कि इसका जिस तरह प्रयाग अन्य राष्ट्रोंके साथ हुआ है उसी तरह इसका प्रयोग तुर्को के साथ होगा और सन्धि परिषदके बाद भी तुर्क साम्राज्य रहेगा। हां, केवल यह नहीं कहा जा सकता कि उसका क्षेत्रफल तथा उसकी सीमा क्या होगी। क्या ही उत्तम शब्द हैं। जिस जातिका अतीत