---०---*---०---
खिलाफत के मामले में मैंने लखनऊ में मुसलमानों को अधीर
देखा। उनकी अधीरता स्वाभाविक थी। मौलवी सलामतुल्ला ने कहा कि अंग्रेजों का रुख तो अब असा होता जाता है। यह कह कर उन्होंने सौम्य भाषा में अङ्गोरा सरकार की स्थिति के विषय में लोगों की जो भावनायें है उन्हीं को ध्वनित किया। इसमें कोई शक नहीं कि तुर्कोके साथ मित्र-भाव रखने के सम्बन्ध में अंग्रेजों ने जो आश्वासन दिये है उनके प्रति अविश्वास बढ़ता जा रहा है। अब इन दो से किसी बातपर कि अंग्रेजों के आश्वासन बिलकुल सच है या ब्रिटिश सरकारको. तुर्कीकीक्षसेहत करनेज्ञकी शक्ति नही है, कोई विश्वास नहीं करता। अतएव अधीरता और क्रोधके आवेशमें मुसलमान कहते हैं कि गष्ट्रीय सभा और खिलाफत-कमेटीकी ओर से कोई जियादा तेज और जोरदार कार्रवाई तुरन्त होनी चाहिये। मुसलमान तो खराज्यका अर्थ यह समझते हैं जैसा उन्हें समझना जरूरी है -कि हिन्दुस्तान खिलाफतके मामले का निपटारा पके तौर
'पर करने के लायक हो जाय । इसलिये वे कहते हैं कि अगर
स्वराज्य के मिलने में अनिश्चित देर है और भार उसके लिये
काम करते हुए मुसलमानों को भूमध्यसागर में तुर्किस्तान की