पृष्ठ:यंग इण्डिया.djvu/५२५

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
३६९
मुसलमानों की बेचैनी


गया है वह अगर दूसरे की मदद के लिये हाथ बढ़ाना चाहे तो इसके सिवा कि खुद अपना पीछा लकवे से छुड़ावे, और क्या कर सकता है ? इसके बजाय अगर केवल नासमझी, नादानी और गुस्से में आकर खून-खराबी कर बैठे तो इससे अन्दर रुकी दुई आग भले ही बाहर धधक उठे, पर तुर्किस्तान का दुख दूर नहीं हो सकता । और न इससे हिन्दुस्तान की वह ताकत हो बढ़ सकती है जिससे वह अपने स्वत्व को प्रदर्शित कर सके । और इसके अलावा, उस दङ्गे फसाद को मिटाने के लिये जो उपाय काम में लाये जायगे उनसे, सम्भव है, हमारा वह बेग जिसके साथ आज हम अपने लक्ष्य की ओर दौड़े चले जा रहे हैं, खासा मन्द पड़ जाय । .

तोभी हमें किसी तरह निराश होने का कोई कारण नहीं है । कांग्रेस का सारा कार्यक्रम ऐसा ही बनाया गया है और ऐसे ही उपाय जारी है जिनसे खिलाफत के सट का सामना किया जा सके । स्वदेशी के कार्य को पूरा करने की मीयाद दो मास की रखी गयी है । यह निस्सन्देह एक ऐसा तीव और प्रबल उपाय है जिसके द्वारा देश का सम्पूर्ण सत्व प्रगट हो सकेगा । और, यदि भारत ने सितम्बर तक पूरा बहिष्कार कर दिखाया और अक्तूबर में वह अपने पांव पर खड़ा हो गया तो निश्चय ही इससे बड़े तेज मिजाज वाले लोगों और मुझ जैसे अधीर तथा जोशी ले खिलाफतियों की आत्मा को सन्तोष होगा ।

पर बात यह है कि अभी हमारे सारे काम करने वाले

२४