सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:यंग इण्डिया.djvu/५३६

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
३८०
खिलाफत और समस्या

योजना कर रही हैं तो यदि मैं अहिंसात्मक उपायों द्वारा उन शक्तियोंके विरुद्ध मुसलमानोंकी सहायता न करू तो मैं हिंसाके प्रवारका दोषी समझा जाऊंगा। जहां दोनों दल हिंसाके प्रतिपादक हैं वहां भी न्याय और ईमानदारी तो एकके पक्षमें अवश्य ही होगी। यदि कोई मनुष्य लुट गया है और अपनी लुटी हुर सम्पत्तिको प्राप्त करनेके लिये वह शस्त्र संग्रह कर रहा है तोभी न्याय तो उसके पक्षमें अवश्य है और यदि क्षत पक्षको किसी तरह समझा बुझा कर अहिंसाके राहपर लाया जाय और अहिंसा द्वारा ही उसने अपने शत्रुपर विजय प्राप्त की तो यह अहिंसाकी पूर्ण विजय समझो जायगी।

अहिंसाके सिद्धान्तमें जो नियन्त्रण मैंने लगाया है उसके आधार पर मिस्टर जचारिया मुझे अहिंसाके प्रतिपादक भले ही न कहे पर मैं उन्हें केवल इतना ही कह सकता हूं कि जीवन एक जटिल समस्या है और सत्य तथा अहिंसा ऐसे सिद्धान्तोंको उपस्थित करती हैं जहां विचार और विन्यास कोई काम नहीं करता। सत्य तथा उसके प्रयोगका एकमात्र उपाय सत्याग्र. हकी प्राप्ति धीरता, तत्परता तथा अटल भक्ति और प्रार्थनासे होता है।

मैं सच हृदयसे यह बात कह सकता हूं कि मैं सत्य मार्गपर चलनेके लिये काई भी प्रयास उठा नहीं रखता और नम्र तथा अनवरत परिश्रम तथा विनीत प्रार्थना थे ही मेरे दो साथी और सहायक हैं जो मेरे उस कष्टपूर्ण तथा सुरम्य मार्गके सहायक हैं जिनपर प्रत्येक सत्यान्वेशीको चलना चाहिये।