पृष्ठ:यंग इण्डिया.djvu/५३९

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खिलाफतपर भाषण

अर्थात् यदि खिलाफतके प्रश्नका निपटारा ठीक तरहसे न हुआ तो इस्लाम धर्म की आशाके अनुसार वे उन अन्य उपायोंसे भी काम ले सकते हैं जो इस्लाम धर्मके अनुसार विहित है। मैं इस प्रस्ताघसे पूर्णतया सहमत है। यह प्रस्ताव बहुत ही नरम और मर्यादित है। इस समारोहमें भागलेने के लिये सिया, सुजी, हिन्दू मुसलमान, सिक्ख और पारसी सभी सम्मिलित हैं। हिन्दुओंने पूरी हडताल करके दिखला दिया है कि वे भो अपने मुसलमा भाइयोंके मतले मर्वथा सहमत हैं, इङ्गलैण्ड में खिलाफतके विरुद्ध जो आन्दोलन उटाया गया है उससे भारत-वासियोंके चित्तमें एक तरहका विकार उत्पन्न हो गया है जिसका शमन तवतक नहीं हो सकता जबतक खिलाफतके मामले में न्याय न किया जाय। इस बातसे मुझे अत्यन्त खेद है कि भारतकी अवस्थाका सम्पूर्ण अनुभव रखनेवाले लार्ड कर्जनने भी इस आन्दोलनमें भाग लेनेकी अदूरदर्शिता की।

आशाकी क्षीण रेखा

पर इस काली घटाके बीच में भी आशाको क्षीण रेखा दिखाई देती है। मिस्टर माण्टगू हमारी मांगपर बराबर जोर देते जा रहे हैं। इधर मिस्टर लायड जार्जने भी रुख बदला है। दवी जबानमें उन्होंने अपने वचनको फिर दोहराया है। जहाँतक मुझे मालूम है भारत सरकार भी हमारी मांगपर जोर दे रही है। विदेशी समाचार पत्र भी अपना हुष नहीं प्रगटकर रहे है।