पृष्ठ:यंग इण्डिया.djvu/५४०

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खिलाफतकी समस्या

टाइम्स आफ इण्डिया तथा बङ्गाल चेम्बर आफ कमसने हमारी मागका पूरी तरहस समर्थन किया है। इस प्रस्ताव द्वारा हम-लोग समस्त अग्रेजोंका आवाहन कर रहे हैं कि वे हमलोगोंके साथ इस सत्यके झण्डेके तलेएकत्रित होकर ब्रिटन की मर्यादाका पालन कर और प्रधान मन्त्रोको प्रतिक्षा-भगके पापसे राके। ब्रिटिश राज्यमें मेरी अनन्य भक्ति है पर मैं उस भक्तिके लिये अपनी इज्जत नहीं बेचना चाहता इसके लिये मैं मुसलमान भाइयोंके धार्मिक भावोंकी हत्या नही करना चाहता। जिस राजभक्तिके लिये आत्माका घेचना पडे उसका न होना ही अच्छा है। विगत यूरोपीय महायुद्धमें भारतीय हिन्दू और मुसलमान सैनिकोंने जो सहायता की है उसका स्वीकार कर भी यदि प्रधान मन्बीने अपने वचनको ताड दिया ता भारतीयोकी राजभक्ति अवश्य गायब हो जायगी। पर अभीतक मैं निराश नहीं हुआ है। यदि वह आशा निराशामें परिणत हो गई और यदि कोई भी बुरी घटना हो गई तो ईश्वर ही जाने इस पवित्र भूमिकी क्या अवस्था हो जायगी। इतना हम कह सकते हैं कि जबतक इस अन्यायका प्रतिशोध न होगा और आठ करोड मुसलमानोंके धार्मिक भावोंकी रक्षा न की जायगी तबतक न तो शान्ति स्थापित हो सकती है और न सरकारको चैन ही मिलेगा।

मेरी समझमें यह बताने की कोई भावश्यकता नहीं है कि हिन्दुओंको मुसलमानोंका साथ क्यों देना चाहिये। जबतक मुसलमानोंका ध्येय और उद्देश्य मर्यादित है तबतक मुसलमानों