लेनेके लिय स्वतंत्र हैं। वे उपाय इस्लाम धर्मके अनुसार दो हैं। या तो वे उस देशको छोड़कर चले जायंगे जो उनके धर्मपर आघात पहुंचावेगा या उसके साथ सशस्त्र युद्ध करेंगे। इस प्रस्तावमे इसलिये वह अवस्थायें स्पष्टतया लिख दी गई है जिनसे होकर इस प्रस्तावको आगे बढ़ना है । इसकी अन्तिम अवस्था रक्त-पात है। ईश्वर करें इस देशको उस दशातक न पहुचना पडे पर खिलाफतके प्रश्नने मुसलमानोंके दिलोंका इतनो चोट पहुंचाया हे कि यदि शान्तिमय उपायोंद्वारा इसका निपटारा न हो गया तो इस देशमे रक्तपातका होना सम्भव हा जायगा और यदि ऐमा हुआ तो उसको जिम्मेदारी अंग्रेज जाति हिन्दू और कायर मुस-लमानोंपर होगी। यदि मान लो अग्रेज जाति मुसलमानोकी अवस्था भली भांति समझकर और ईमानदारीसे निपटारा कर देना चाहती है तो सब बातें ठीक तरहसे निपट जायगी। यदि हिन्दुओंने अपने कर्तव्यको समझा और मुसलमानोंका साथ तत्परताके साथ दिया तो दोनो एक होकर इस प्रश्नका निपटारा मजेमें करा सकते हैं। मुसलमानोसे भी मेरा अनुरोध है कि अपनी कायरताका त्याग करके इस समय रक्तपात होनेसे बचावे।। इसका उपाय यही है कि वे हिसा करनेवालोको दिखला दें कि इस्लामके प्रति कोई भी मनुष्य विश्वासघात नहीं करेगा। इसलिये यदि हम लोगोंके भाग्यमें रक्तपात ही लिखा है ता यह उसी समय उपस्थित होगा जब मुसलमान अंग्रेज जातिके अन्याय, हिन्दू और अन्य मुसलमानोंके विश्वासघातके कारण चारो ओरसे निराश
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