हो जायंगे । मुझे पूर्ण आशा है कि भारत का प्रत्येक निवासी इस न्यायपूर्ण मांग और प्रार्थना में शरीक होगा । मुझे पूर्ण आशा है कि सरकार भी नासमझी और क्रोध से काम लेकर व्यर्थ का दमन जारी करके रक्तपात का अवसर न देगी । उन्हें समझ लेना चाहिये कि भारतवर्ष अब अबोध नहीं रहा और भारतीयों के भी हृदय में वे ही भाव भरे हैं जो ऐसे अवसरों पर सच्चे अंग्रेज के हो सकते हैं ।
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६ मई १९१६ को अनजुमन ज़िया-उल-इसलाम बम्बई की
एक असाधारण सभा खिलाफत के प्रश्न पर विचार करने के लिए
हुई थी । मि० कदीरभाई बैरिस्टर ने सभापति का आसन ग्रहण
किया था । लाखों हिन्दू और मुसलमान इस सभा मोजूद
थे । महात्मा गाँधी श्रीयुक्त जमनादास द्वारकादास श्रीयुक्त शङ्कर.
लाल बैंकर भी उपस्थित थे । सभापति ने गांधीजी को व्याख्यान
देने की प्रार्थना करते समय कहा कि महात्माजी की जिन्दगी भर
यही कोशिश रही कि हिन्दू-मुसलमानों में एकता हो जाय ।
महात्माजी ने निम्न लिखित व्याख्यान दिया:---