पृष्ठ:यंग इण्डिया.djvu/५४४

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खिलाफतकी समस्या

सभापतिने मेरे विषयमें जो कुछ कहा है वह ठीक है, क्योंकि मै अपने लडकपनसे ही इस बातकी बडी अभिलाषा रखता था कि हिन्दू मुमलमानोके बीच भेदभाव दूर हो जाय । जब मैं दक्षिण अफ्रिकामें रहता था उस समय मेर मुसलमान भाइयोंके साथ घनिष्ट सम्बन्ध हुआ। मैं मुसलमानोंके एक मुक मेमें गया था, और वहाँ मैं उनके स्वभाव विचार और अभिलाषाओमे परिचित हुआ। सन् १९१४ में मैं दक्षिण अफ्रिकासे रवाना हुआ और ' अगस्तको, अर्थात इङ्गठण्ड और जर्मनीमें युद्ध छिडनेके दो दिन पश्चात् लन्दन रहुँचा। शीघ्रडी मैंने टाइम्समें एक लेखमाला गढी, जिसमें यह अनुमान करने की चेया की गई थी कि टर्की इन टैण्ड और जर्मनी मेंस किसकी ओर रहेगा। मैंने यह भी देखा कि लन्दनमें रहनेवाले मुसलमागेमे भी खलबली मची हुई थी। एक दिन प्रात काल हमने टीके मनी मिल जानेका समाचार पढा। उस समय मुझे इतनी फुरसत नहीं थी कि टर्कीसे सम्बन्ध रखनवाले प्रश्नों पर विचार कर सकता और टर्कीके इस कार्य पर अपनी राय प्रगट करता। मैंने केवल यह प्राथना को कि भारत अशाति और उपद्रवांसे सुरक्षित रहे। मुझे दक्षिण अफ्रिकामें मुसलमान मित्रोका ट्रिपोलोकी लडाईको घटना को समझाना पडा था और मैं उनके भावोंको अच्छी तरह समझ गया था। इस लिए मुझे यह समझ सकने में जरा भी कठि नाई न हुई कि टर्कीके शत्रुदल के साथ मिल जानेसे मुसलमानोंके दिलों में कैसे कैसे भाष उत्पन्न हो रहे थे। उनकी अवस्था अब