पृष्ठ:यंग इण्डिया.djvu/५८८

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खिलाफत

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(मार्च २३, १९२१)


सेवरकी सन्धिमें जिस परिवर्तनकी चर्चा चल रही है वह भारतीय मुसलमानोंको सन्तुष्ट नहीं कर सकती। व्यवस्था यह हो रही है कि यूरोपमें तुर्कीको एशिया माइनर स्मर्ना और कुस्तुन्तूनिया दे दिया जाय । पर ब्रिटनको स्मरण रखना चाहिये कि उसे केवल तुर्को को ही सन्तुष्ट नहीं करना है। भारतीयोंको भी शान्त करना उसके लिये जरूरी है। मेरी समझ में आवश्यक बात यह है कि भारतीय मुसलमानोंकी मांगे पूरी की जायं चाहे तुर्कीका सन्तुष्ट किया जाय या नहीं। इसके दो कारण हैं। खिलाफत एक ध्येय है और जब मनुष्य किसी ध्येयको सामने रखकर काम करता है तो वह अदम्य हो जाता है । मुसलमानोंके सामने यह महान ध्येय है और इसीलिये उनकी सहायताके लिये समस्त भारत खड़ा है।

जो लोग कहते हैं कि मुसलमान लोग तुर्कीके लिये यह आन्दोलन मचा रहे हैं वे भ्रममें हैं। यदि आज तुर्की अपने पथसे भ्रष्ट हो जाय तो मुसलमान उसका साथ कभी नहीं देंगे। उदाहरण के लिये यदि वह आज चाहे कि उसकी घदी सिति हो जाय जो सुलेमानके राजत्व कालमें थी, तो भला इस पागलपनकी