जोर लगाया गया और क्रम से एक सदस्य पर तो शीघ्र चलने के लिये हल का आक्रमण भी किया गया था। इन ५५ सदस्यों पर खनसेवकों की भर्ती के प्रस्ताव का मसौदा तैयार करने तथा उस पर विवाद करने के कारण क्रिमिनल ला एमेंडमेंट ऐक्ट के अनुसार एक योग्य न्यायाधीश की अदालत में मुकदमा चलाया गया। प्रत्येक सदस्य को अठारह अठारह मास की सजा दी गयो। विशेष प्रकार की सजा पाने की योग्यता के सम्बन्ध में जिस सदस्य का मजिस्ट्रेट के दिमाग पर जैसा प्रभाव पड़ा, उसी के अनुसार उसे कड़ी या सादी सजा दी गयी। यह तो बनी बात थी कि न तो किसीने मुकदमों की पैरवी की और न उनकी अपील की गयी, किन्तु प्रान्तीय सरकार ने बाद में कुछ विशेष प्रकार के राजनीतिक मामलो की जांच करने के निमित्त जिस विशेष जज को नियुक्त किया। उसने संभवतः यह राय दी थी कि इन २५ सदस्यों ने कोई जुर्म नहीं किया था। प्रान्तीय व्यवस्थापक सभा के सदस्यों ने इस रिपोट को सभाके अवलोकनार्थ मेजपर रखने के कई प्रयत्न किये, किन्तु निष्फल हुए। यद्यपि अन्त में सरकार को यह मानना पड़ा कि अभियुक्तों पर जो जुर्म लगाये गये थे वे कानून के अनुसार न थे, तभी उस पर इस सलाह का इतना असर न पड़ा कि वह प्रान्त के इन ५५ चुने हुए सावेजनिक नेताओं का अपने चंगुल से निकल जाने देती। इस प्रकार ये लोग जेल में ही बने रहे। कुछ के साथ प्रथम श्रेणी के राजनीतिक अपराधियों कासा और दूसरों के साथ मामूल
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