वैदियोंकासा व्यवहार किया जाने लगा। प्रान्तीय सरकार ने इन्हें जेल में डाल रखने का यह कारण बतलाया कि इन लोगों ने अपील नहीं की। और यदि इन्होंने अपील की होती तो अपील सुननेवालो अदालत को यह अधिकार था कि वह इन पर लगाये गये दोषों को बदलकर जाब्ता फोजदारी को उन धाराओं के अनुसार कर देती जो इन पर अधिक लागती होतीं। इनमें से एक सदस्य जो कि अपने कुटुम्ब का पालन करने वाला बलवान्म वयुवक था लखनऊ जेल में ज्वरसे पीड़ित होकर स्वर्गवास कर गया। इस युवक को मृत्यु के समय की परिस्थिति के सम्बन्यो समाचार पत्रों में लिखा पढ़ी हुई थी अ खुली जांव कराने का अनुरोध किया गया था, किन्तु खुलो जांच न होने दी गयी। बचे हुए लोग अपनी सजा के आधे से ज्यादा दिन काट चुके हैं। अभी हाल में ही विशेष घोषणा द्वारा वे छोड़ दिये गये हैं।
भारत में ब्रिटिश न्याय का स्वरूप दिखलाने के निमित्त यहां पर दो चार अन्य प्रसिद्ध मुकदमों का संक्षिप्त उल्लेख कर देना अच्छा होगा।
कांग्रेस के मनोनीत सभापति देशबन्धु श्रीचित्तरञ्जन मास लोगों से स्वयं सेवक बनने का अनुरोध प्रकाशित करने के कारण, क्रिमिनल ला पमण्डमेण्ट एकके अनुसार २३ दिसम्बर