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पृष्ठ:याक़ूती तख़्ती.djvu/१८

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याक़ूतीतख़्ती


फरामोश हर्गिज़ नहीं है। तुम यकीन करो कि अफरीदी कौम अपने साथ भलाई करनेवाले के लिये उस भलाई के बदले में अपनी जान तक दे डालने में कभी मुंह नहीं मोड़ती। मैं एक नाचीज़ औरत हैं, लेकिन जिस ख़दा ने इस मिट्टी के पतले इनसान में जान और मां के थन में दूध दिया है, उसी पाक परवरदिगार ने औरतों के दिल में भी मुहब्बत आर एहसानदानी दी है, इसलिये अगर तुम्हारे दिल में मेरा कुछ भी खयाल हो तो मुझे तुम अपना दोस्त समझो और इस तोहफे को अपने दस्त की निशानी समझ कर कबूल करो। चाहे तुम मेरी कौम को कितना ही जाहिल व हेच समझो लेकिन इसमें कभी उन नहीं कर सकते कि जिस खुदाने तुम्हें बनाया है, अफरीदी भी उसीक पाक हाथ से बनाए गए हैं।

हमीदा के तर्क से में मुग्ध होगया और देरतक उसकी ओर देखता रहा। फिर बोला,–“सुन्दरी, हमीदा! मनुष्यों की जान लेने का जिन्हें अभ्यास पड़ गया है उनकी कठोर जिह्वा से यदि कोई कड़ी बात निकल जाय तो क्या आश्चर्य है! तात्पर्य यह कि अफरीदियों के स्वभाव से में जानकार नहीं हूं, किन्तु इतना में अवश्य कहूंगा कि तुम्हारी ऐसी सहृदय नारीरत्न मैंने आजतक नहीं देखी। तुम पर मेरी कुछ भी अवज्ञा नहीं है, इसलिये यदि मेरे मुख से कोई कड़ी बात निकल गई हो तो उसे तुम क्षमा करना।”

मेरी बातों से हमीदा का क्रोध वा क्षोभ कुछ शान्त हुआ और उसने सिर झुकाकर बड़ी नन्नता से कहा,-"तो तुम अपने मुँह से कहो कि तुमने एक अफरीदी औरत के तोहफे को दिल से कबूल किया! मैं कोई मामूली औरत नहीं हूं, बल्कि एक नामी गिरामी अफ़रीदी सर्दार की लड़की हूं। मेरे वालिद, यानी अफ़रीदियों के सर्दार मेहरखां को कौन नहीं जानता! इसलिये मैं समझती हूं कि तुम्हारे जैसे बहादुर शख्ल को मैने अपनी मुहब्बत का तोहफा देकर कुछ बजा नहीं किया! क्या में उम्मीद करूं कि बहादुर होकर तुम उस औरत के तोहफे के लेने से अब इन्कार न करोगे, जो कि बहादुरी और सिपहगरी को तहेदिल से कदर करती हो। भला, बतलाओ तो सही, कि आज तक दुनियां में ऐसा कौन नामी बहादुर हुआ है, जिसने किसी कदरदान औरत के तोहके को तुच्छ और नाका- बिल समझ कर कबल न किया हो!"