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पृष्ठ:याक़ूती तख़्ती.djvu/४८

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[छठवां
याक़ूतीतख़्ती


कि सिक्खवीर मौत से नहीं डरते।"

मेरी बात सुनकर मेहरवां और भी भभक उठा और ज़ोर से बोला,"बेवकूफ, काफिर मैंने समझ लिया कि तेरी मौत तेरे सरपर आपहंची है! तो खर, ऐसाही हो! मैं तुझे कत्ल का हुक्म सुनाता हूं, इसलिये अब तू मरने के लिये तैयार होजा। आज शाम को अफरीदी जल्लाद तुझे कत्ल करेगा।'

बस, इतना कह कर उसने मुझे पुनः जेल में लेजाने के लिये अपने सिपाहियों को हुक्म दिया और मैं फिर उसी भीषण कारागार में पहुंचा दिया गया।

जगदीश बाबू! जबकि मैंने अपनी मौत को आपही बुलाया था तो फिर मैं मरने से भयभीत क्यों होने लगा था! अस्तु, कारागार में आनेके समय मैने भगवान भास्कर को भक्तिपूर्वक प्रणाम किया, क्योंकि फिर मुझे दूसरे दिन के सूर्य का दर्शन कब संभव था! यद्यपि इस नश्वर संसार में जो जन्मा है, वह एक न एक दिन अवश्य मरेगा, यह बात सभी जानते हैं; परन्तु 'तुम आज मरोगे,' ऐसा सुनकर कौन धार धर सकता है! हाय, इस महा त्रासदायक मृत्यु के समाचार को मुज कर कौन विकंपित नहीं होता! परन्तु तुम सच जानो कि, जबकि में स्वयं जान देने के लिये तैयार हुआ था तो फिर मुझे उस ( मृत्यु ) से भय क्यों लगने लगा था! अतएव मैं स्वस्थ होकर कारागार में परमेश्वर का चिन्तन करने लगा। किन्तु उस ईश्वर के भजन में रह रह कर व्याघात होने लगा और प्यारी हमीदा का ध्यान मुझे विचलित करने लगा। यद्यपि फिर हमीदा सुझसे नहीं मिली थी, यह बात मैं कह आया हूं, परन्तु वह उसी प्रहरी के हाथ मेरे लिये बराबर भोजन भेज दिया करती थी, जिसे मैं बड़ी रुचि के साथ खाता था, परन्तु आज के भोजन को मैंने छुआ तक नहीं, और यही इच्छा मनही मन करने लगा कि किसी प्रकार मरने से पहिले एक बेर हमीदा का दर्शन होजाय! परन्तु यह मेरी इच्छा मेरे मनमें ही रही और इस विषय में मैंने उस पहरेदार से इसलिये कुछ कहना उचित न समझा कि कहीं मेरे कारण उस बेचारी पर कोई आपदा न आजावे, क्योंकि इस बात को में भली भांति समझता था कि यदि वह मेरे पास तक आसकेगी, तो मरने से पहिले वह मुझे अवश्य अपना ही दर्शन देगी। निदान, इन्हीं सब जंजालों में फंसकर मैं शान्तिपूर्वक ईश्वराराधन