पृष्ठ:याक़ूती तख़्ती.djvu/५३

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परिच्छेद]
(५१)
यमज-सहोदरा


करने से मुझे सुस्ती ने आघेरा, जिसं जान कर हमीदा ने मुझे कोई दवा पिलाई, जिसके पीतही मैं गहरी नीद में लो गया। यद्यपि में गहरी नींद में सो गया, पर तौ भी मुझे यह जान पड़ने लगा कि मानो किसी सुन्दरी ने मेरे सिर को अपनी अत्यन्त कोमल गोद में रख लिया है और अपने अत्यन्त कोमल हाथ को मेरे बदन पर फेरना प्रारंभ किया है! जब तक मैं साया रहा, ऐसाही सपना बराबर देखता रहा, बरन मुझे तो ऐसा भी जान पड़ता था कि मानो कोई प्रेममयी सुन्दरी मेरे लिये आंसू बहाती थी, जिसकी कई बूदें मेरे बदन पर भी गिर पड़ी थीं। कितनी देर में में जागा, यह मैं नहीं कह सकता, पर जब मैं जागा तो वहां पर मैंने किसी कोभी न पाया, पर कई बूदें जिन्हें मैने सपने में गिरते देखा था, अबतक मेरे बदन पर मौजूद थीं, और सूखी न थीं। मैंने देखाकि उस पाषाणमय गृह में, जिसमें में पड़ा था, किसी ओर कोई द्वार न था, पर ऊपर बने हुए छेदों में ले उजाला आ रहा था, इस लिये मैंने जाना कि दिन का समय है।

इतने ही में मैंने क्या देखा कि एकाएक हलकी आवाज़ के साथ एक ओर की दीवार का एक पत्थर ज़मीन के अन्दर घुस गया और उस राह से हाथ में खाने का सामान लिए हुए हमीदा आपहुंची। उसे देखतेही मैं उठने लगा, पर मुझसे उठा न गया। मुझे उठने की चेष्टा करते हुए देख कर हमादाने कहा,-"आप उठने की कोशिश न करें, तकलीफ़ होगी।"

मैंने कहा,-"हमीदा! तुमने तो मुझे एक विचित्र गृह में रक्खा है!"

उस सुन्दरी ने कहा,-"जी! मैं हमीदा नहीं हूं: बल्कि उसकी बहिन 'कुसीदा हूं!"

यह बिचित्र उत्तर सुन कर मेरे आश्चर्य की कोई सीमा न रही! क्योंकि कुसीदा बिल्कुल हम दा सी ही थी और उन दोनों की सरत शकल में कुछ भी अन्तर न था। यह बात मझसे हमीदा कह चुकी कि,-'इस जगह पर मैं और मेरी बहिन के सिवाय और कोई नहीं आसकता; और इसके पहिले भी हमीदा ने एक बार अपनी एक बहिन का होना बतलाया था। इसलिये उस सुन्दरी के कहने को मैने झूठ न समझा, परन्तु मुझे इस बात का बड़ा अचरज था कि क्या एक साथ पैदा होनेवाले-लड़की या लड़के-दिल्कल एकही से होते हैं, और उनकी सूरत शकल में कुछ भी अन्तर नहीं होता?