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पृष्ठ:याक़ूती तख़्ती.djvu/५४

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[आठवां
याक़ूतीतख़्ती


आठवां परिच्छेद

मैं ये बातें मनही मन सोचता जाता था और कुसीदा की ओर टकटकी बांध कर देखता जाता था। मेरे मन के भाव को कुसीदा ने भली भांति समझा और हंस कर कहा,-"क्या, आपको मेरे कहने पर यकीन नहीं होता!"

मैंने कहा,-"हां, सचमुच बात ऐसीही है और मैं ऐसा समझता हूं कि, हमीदा! तुम मुझसे दिल्लगी कर रही हो!" इस पर वह खिलखिला कर हंस पड़ी और अपना बायां गाल मेरे सामने कर के बोली,-"देखिए, मेरे बाएं गाल पर तिल का निशान है। बस, अब तो आपने यह बात बखूबी समझली होगी कि में हमादा नहीं हूं, बल्कि उसकी बहिन कुसीदा हूं और आपके साथ दिल्लगी नहीं की जा रही है!"

मैंने कहा,-"वाह! तिल तो हमीदा के गाल पर भी है!"

उसने कहा,-"हां, बेशक है, लेकिन उसके दहने गाल पर है और मेरे बाएं गाल पर। बस, अगर खुदा ने इतना भी फर्क हम दोनों में न डाल दिया होता तो फिर दुनियां में ऐसा कोई ज़रिया बाकी न रह जाता, जिससे हम दोनों अलग अलग पहचानी जा सकती।"

मैंने हमीदा के गाल पर वैसाही तिल ज़रूर देखा था, पर इस बात पर मैंने अब तक ध्यान नहीं दिया था कि उसके किस गाल पर तिल है! सो, मैं कुसीदा की बिचित्र बातों की उलझन को सुलझा रहा था कि इतने ही में हमीदा भी आ पहुंची और उसने एक कहकहा सः कर मुझसे कहा,-"आज तो आप एक अजीब उलझन में फंसेगें! क्योंकि आज यह पहला ही मौका ऐसा हुआ है, जबकि आपके सामने हम दोनो बहिने आ मौजूद हुई हैं!"

मैंने कहा,-" हां, निस्सन्देह! आज मैं बड़ी उलझन में फंसा हुआ हूं।"

इसके अनन्तर कुसीदा ने वे सब बातें, जोकि उसके साथ मेरी हइ थीं, कह सुनाई, जिन्हें सुन, हमीदा ने हंसकर कहा,-"हां, ये सब बातें, मैं बाहर ही से रौशनदान के पास खड़ी खड़ी सुन चुकीहूं।'