पृष्ठ:याक़ूती तख़्ती.djvu/६२

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
(६०)
[नवां
याक़ूतीतख़्ती


मेरी बात सुन, उठा कर हमीदा हंस पड़ी, जिससे कुछ संकुचित होकर मैंने पूछा,-" तुम इस तरह क्यों हंस पड़ी।"

मेरी बात सन और मझसे आंखें मिला कर हमीदा ने मुस्कुराते हुए कहा,-"निहालसिंह! यक बयक तुम्हारा ऐसा धर्मज्ञान कैसे जाग पड़ा! अगर तुम धर्म से इतना डरते हो तो बेचारे बेकसूर अफरीदियों को कत्ल करने क्यों आए? क्या इन लोगों ने तुम्हारा कोई कसर किया है? और सोचो तो, तुम्हारा क्या कसूर था जो मेरे वालिद ने तुम्हारे कत्ल का हुक्म दिया था! लेकिन, खैर तुम ज़रा यहीं ठहरो; मैं आगे बढ़ कर पहरेवाले से कहती हूं कि वह मेरा रास्ता छोड़दे। अगर इस तरह काम निकल गया तो ठीक है, वरन फिर तुम्हें अपनी राह साफ़ करने के वास्ते मजबूर होना पड़ेगा।"

यों कह और मेरे उत्तर का आसरान देख कर हमीदा आगे बढ़ी और उसके पैर की आहट पाते ही पहरेवाले ने ज़ोर से ललकार कर कहा,-"इस घाटी में कौन चला आरहा है?"

यों कह और अपनी तल्वार सम्हाल कर वह सिपाही रास्ता रोक कर खड़ा हुआ और हमीदा ने उसक सामने पहुंच कर कहा,- "मैं अफरीदी सरदार मेहरखां की लड़की है और उम्मीद करती हूं कि तुम्हारे लिये इतनाही कहना काफी होगा और तुम मुझे अपने एक साथी के साथ इस घाटी से पार होजाने दोगे।"

हमीदा की बात सुन कर उस सिपाही ने अपने हाथ की मशाल ऊंची कर के उसके मुखड़े को देखा और उसे पहचान, शाहानः आदाब बजा ला कर कहा,-" हज़रत सलामत! मैंने आपको पहचान लिया। बेशक आप मेरे सर की प्यारी दुखतर हैं; लेकिन आप मेरी गुस्ताकी मांफ कीजिएगा; आपको इस घाटी के पार होने का परवाना मुझे दिखलाना चाहिए। क्योंकि मैं एक अदना गुलाम हूं और आपके वालिद के हुक्म की तामीली करना अपना फर्ज समझता हूं।"

पहरेवाले की बात सुन कर मारे क्रोध के हमीदा जल उठी, पर उसने अपने उमड़ते हए क्रोध को मन ही मन दबा कर कहा, "बेवकूफ सिपाही! आज यह मैंने नई बात सुनी कि मेहरखां की लड़की को भी घाटी से बाहर जाने के लिये परवाना दिखलाना पड़ेगा मामाकूल! तू क्या मेरो बेइज्जती करने पर आमादा हुआ है? बस, हटजा और मुझे इस घाटी से बाहर चले जानेदे।"