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पृष्ठ:याक़ूती तख़्ती.djvu/६३

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परिच्छेद]
(६१)
यमज-सहोदरा


हमीदा की बातें सुन कर उस ईमानदार सिपाही ने हाथ जोड़ कर बड़ी नम्रता से कहा,-"हुजूर! मैं आपका एक अदना गुलाम हूं, लेकिन बगैर हुक्मनामा दिखलाए, आप कोभी इस घाटी से बाहर नहीं जाने देसकता! गो, आप मेरे मालिक की लड़की हैं, लेकिन आपके वालिद के हुक्म के आगे मैं आपका हुक्म नहीं मान सकता। पस, मैं उम्मीद करता हूं कि अब आप इस बारे में ज़ियादह ज़िद न करेंगी।

हमीदा ने कड़क कर कहा,-"तो मैं जानती हूं कि अब तेरी मौत आई है!"

सिपाही,-"चाहे जो कुछ हो, लेकिन जब तक मेरे दम में दम रहेगा, मैं अपने सरदार की हुक्म अदूली हर्गिज़ न करूंगा।"

हमीदा,-"पाजी, गुलाम! तुझे इतना ग़रूर हुआ है कि मेरे हुक्म की बेइज्जती करता है? क्या तू इस बात को मुतलक भूल गया है कि मेरी तौहीन करने की तुझे कैसी सज़ा दी जायगी? अफ़सोस, सरदार मेहरखां की लड़की की यह बेइज्जती!"

इस पर पहरेदार ने और भी नम्रता से कहा,- बीबी हमीदा! मुझे धमका कर आप मेरे फर्ज से मुझको हर्गिज न गिरा सकेंगी। आपके वालिद ने मुझे ऐसी नसीहत नहीं दी है कि मैं अपने फर्ज़ से चूकूँ। लेकिन बड़े अफ़सोस का मुकाम है कि आप मुझे नाहक़ ज़ेर करती हैं! अच्छा, अब आप साफ़ सुन लीजिए कि आपके वालिद ने ऐसा ही हुक्म दिया है कि बगैर परवाना दिखलाए, हमीदा भी अफरीदी सिवाने के बाहर न जाने पाए। पस, मैं उम्मीद रखता हूं कि अब आप लौट जायंगी, वर न मैं आपको कैद करके आप के वालिद के पास भेज दूंगा; क्योंकि उनका ऐसा ही हुक्म है।"

हमीदा,-"ओफ़! जान पड़ता है कि यह सारी शरारत कमीने अबदुल की है। ( पीछे फिर कर ) निहालसिंह! अब में तुम्हे हुक्म देती हूं कि अगर तुममें कुछ भी मर्दूमी हो तो अपने रास्ते को साफ़ कर डालो।"

जगदीश बाबू! हमीदा के मुंह से इतना निकलते ही इधर से तो बंदूक उठाए हुए मैं झपटा और उधर से मेरे सामने वह सिपाही दौड़ आया। उसने आते ही मेरा निशाना बनाकर बंदूक दाग दी, पर ईश्वर के अनुग्रह से मैं उस वार को बचा गया और उस सिपाही को अपना