पृष्ठ:याक़ूती तख़्ती.djvu/६४

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
(६२)
[नवां
याक़ूतीतख़्ती


निशाना बनाया। पहली ही गोली उसके माथे में लगी और वह गिर कर वहीं रह गया। तब मैंने हमीदा से कहा,-"प्यारी, हमीदा! सम्भव है कि यहां कहीं पासही अफरीदी सेना की छावनी हो और बंदूक की आवाज़ सुन कर इधर कुछ सिपाही आजायँ, तो बड़ा बखेड़ा मचेगा; इसलिये अब यही उचित है कि जहांतक जल्द हो सके, इस घाटी से पार पहुंचना चाहिए।"

"हां, यह तो सही है;"इतना कह कर हमीदा आगे हुई और मैं उसके पीछे पीछे चला। उस समय चलते चलते हमीदा ने एक लंबी सांस ली और धीरे धीरे आप ही कह उठी,-"अफसोस! आज मेरे वालिद का एक ईमानदार सिपाही मारा गया!"

मैंने उदासी से कहा,-"किन्तु सुन्दरी, हमीदा! मैंने केवल तुम्हारी आज्ञा का पालन किया।"

हमीदा,-"निहालसिंह! इस बारे में मैं तुमको कसूरवार नहीं बनाती! ओफ एहसान का बदला चुकाना कितना मुश्किल है!"

निदान, फिर हम दोनो चुपचाप उस घाटी में, जहां तक हो सका, जल्दी जल्दी चलने लगे। यद्यपि सवेरा होगया था, पर कुहेसे के कारण घाटी में पूरा परा उजाला नहीं हुआ था। यद्यपि वह रास्ता बहुतही बीहड़ और भयानक था, पर मेरे आगे राह दिखलाने वाली हमीदा थी, इसलिये मुझे विशेष कष्ट नहीं हुआ ।