पृष्ठ:योगवाशिष्ठ भाषा प्रथम भाग.djvu/१३

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
वैराग्य प्रकरण।

जो अद्वेत ज्ञान से सम्पन्न हैं, अज्ञान को अंगीकार करके मनुष्य का शरीर धारण किया। इतना सुन राजा ने पूछा, हे भगवन्! चिदानन्द हरि को शाप किस कारण हुआ और किसने दिया सो कहो? वाल्मीकिजी बोले, हे राजन! एक काल में सनत्कुमार, जो निष्काम हैं, ब्रह्मपुरी में बैठे थे और त्रिलोक के पति विष्णु भगवान भी वैकुण्ठ से उतरकर ब्रह्मपुरी में पाये। तब ब्रह्मासहित सर्वसभा उठकर खड़ी हुई और श्रीभगवान का पूजन किया, पर सत्नकुमार ने पूजन नहीं किया। इस बात को देखकर विष्णु भगवान बोले कि हे सनत्कुमार! तुमको निष्कामता का अभिमान है इससे तुम काम से आतुर होगे और स्वामिकार्तिक तुम्हारा नाम होगा। सनत्कुमार बोले, हे विष्णो! सर्वत्रता का अभिमान तुमको भी है, इसलिये कुछ काल के लिए तुम्हारी सर्वत्रता निवृत्त होकर अज्ञानता प्राप्त होगी। हे राजन्! एक तो यह शाप हुआ, दूसरा एक भोर भी शाप है, सुनो। एक काल में भृगु की ची जाती रही थी। उसके वियोग से वह ऋषि क्रोधित हुआ था उसको देखकर विष्णुजी इसे तब भृगु ब्राह्मण ने शाप दिया कि हे विष्णो! मेरी तुमने हंसी की है सो मेरी नाई तुम भी स्त्री के वियोग से आतुर होगे। और एक दिवस देवशर्मा ब्राह्मण ने नरसिंह भगवान को शाप दिया था सो भी सुनिये। एक दिन नरसिंह भगवान गंगा के तीर पर गये और वहाँ देवशर्मा ब्राह्मण की स्त्री को देखकर नरसिंहजी भयानक रूप दिखाकर हँसे। निदान उनको देखकर ऋषि की स्त्री ने भय पाय प्राण छोड़ दिया। तव देवशर्मा ने शाप दिया कि तुमने मेरी स्त्री का वियोग किया, इससे तुम भी स्त्री का वियोग पावोगे। हे राजन्! सनत्कुमार भृगु और देवशर्मा के शाप से विष्णु भगवान ने मनुष्य का शरीर धारण किया और राजा दशरथ के घर में प्रकटे। हे राजन्! वह जो शरीर धारण किया और भागे जो वृत्तान्त हुआ सो सावधान होकर सुनो। अनुभवात्मक मेरा आत्मा जो त्रिलोकी अर्थात् स्वर्ग, मृत्यु, और पाताल का प्रकाशकर्ता और भीतर बाहर आत्मतत्त्व से पूर्ण है उस सर्वात्मा को नमस्कार है। हे राजन्! यह शास्त्र जो आरम्भ किया है इसका विषय, प्रयोजन और