पृष्ठ:योगवाशिष्ठ भाषा प्रथम भाग.djvu/१३०

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योगवाशिष्ठ।

जैसे ज्यों २ सूर्य उदय होता है त्यों २ अन्धकार नष्ट होता है वैसे ही विकार नष्ट होंगे। तब उस पद की प्राप्ति होगी जिसके पाने से संसार के क्षोभ मिट जायँगे। जैसे शरदकाल में मेघ नष्ट हो जाता है वैसे ही संसार के क्षोभ मिट जाते हैं। हे रामजी! जिस पुरुष ने कवच पहना हो उसको बाण नहीं वेध सकते वैसे ही ज्ञानवान् पुरुष को संसार के राग देष नहीं बंध सकते। उसको भोग की भी इच्छा नहीं रहती और जब विषय भोग आते हैं तब उनको विषय जानके बुद्धि ग्रहण नहीं करती जैसे पतिव्रता स्त्री अपने अन्तःपुर से बाहर नहीं निकलती वैसे ही उसकी बुद्धि भीतर से बाहर नहीं निकलती। हे रामजी! बाहर से तो वह भी प्राकृतिक मनुष्यों के समान दृष्टि आते हैं और जो कुछ अनिच्छित प्राप्त होते हैं उनको भुगतता हुआ दृष्टि में आता है पर अन्तर से उसको राग देष नहीं फुरता। हे रामजी! जो कुछ जगत् की उत्पति और प्रलय का शोभ है वह ज्ञानवान को नष्ट नहीं कर सकता। जैसे चित्र की बेलि को आंधी नहीं चला सकती वैसे ही उसको जगत् का दुःख नहीं चला सकता। वह संसार की ओर से जड़ हो जाता है और वृक्ष के समान गम्भीर, पर्वत की नाई स्थिर और चन्द्रमा के सदृश शीतल हो जाता है। हे रामजी! वह आत्मज्ञान से ऐसे पद को प्राप्त होता है जिसके पाने से भौर कुछ पाने योग्य नहीं रहता। आत्मज्ञान का कारण यह मोक्षोपाय शास्त्र है इसमें नाना प्रकार के दृष्टान्त कहे हैं। जो वस्तु अपरिच्छिन हो और देखने में न आवे और उसका न्याय देखने में हो तो उसको उपमा से विधिपूर्वक समझाने का नाम दृष्टान्त है। हे रामजी! जगत् कार्य और कारण से रहित है तो आत्मा और जगत् की एकता कैसे हो इससे मैं जो दृष्टान्त कहूँगा उसकाएक अंश अंगीकार करना, सबदेश अङ्गीकार न करना। हे रामजी! कार्य कारण की कल्पना मूखों ने की है। उसके मिटाने के लिये मैं स्वप्न दृष्टान्त कहता हूँ, उसके समझने से तेरे मन का संशय नष्ट हो जावेगा। मन ओर दृश्य का भेद मूर्ख को भासता है। उसके दूर करने के अर्थ मैं स्वप्न दृष्टान्त कहूँगा जिसके विचारने से मिथ्याविभाग कल्पना का प्रभाव होता है। हे रामजी! ऐसी कल्पना का