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पृष्ठ:योगवाशिष्ठ भाषा प्रथम भाग.djvu/१५

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वैराग्य प्रकरण।

रूपी समुद्र के पार करने को जहाज है और इससे सब जीव कृतार्थ होंगे। इतना कहकर ब्रह्माजी, जैसे समुद्र से चक्र एक सुहूर्त पर्यन्त उठके फिर लीन हो जावे वैसे ही अन्तर्द्धन होगये। तब मैंने भारदाज से कहा, हे पुत्र! ब्रह्माजी ने क्या कहा? भारद्वाज बोले हे भगवन! ब्रह्माजी ने तुमसे यह कहा कि हे मुनियों में श्रेष्ठ! यह जो तुमने राम के स्वभाव के कथन का उद्यम किया है उसकात्याग न करना; इसे अन्तपर्यन्तसमाप्ति करना क्योंकि, संसारसमुद्र के पार करने को यह कथा जहाज है और इससे अनेक जीव कृतार्थ होकर संसार संकट से मुक्त होंगे। इतना कहकर फिर वाल्मीकिजी बोले हे राजन!जब इस प्रकार ब्रह्माजी ने मुझसे कहा तब उनकी मात्रानुसार मैंने ग्रन्थ बनाकर भारद्वाज को सुनाया। हे पुत्र! वशिष्ठजी के उपदेश को पाकर जिस प्रकार रामजी निश्शंक हो विचरे हैं वैसे ही तुम भी विचरो। तब उसने प्रश्न किया कि हे भगवन! जिस प्रकार रामचन्द्रजी जविन्मुक्त होकर विचरे हैं वह आदि से क्रम करके मुझसे कहिये? वाल्मीकिजी बोले, हे भारद्वाज! रामचन्द्र, लक्ष्मण, भरत, शत्रुघ्न, सीता, कौशल्या, सुमित्रा और दशरथ ये आठ तो जीवन्मुक्त हुए हैं और पाठ मन्त्री अष्टगण वशिष्ठ और वामदेव से आदि अष्टाविंशति जीवन्मुक्त हो बिचरे हैं उनके नाम सुनो। रामजी से लेकर दशरथपर्यन्त आठ तो ये कृतार्थ होकर परम बोधवान् हुए हैं और १ कुन्तभासी, २ शतवर्धन, ३ सुखधाम ४ विभीषण, ५ इन्द्रजीत, ६ हनुमान्, ७ वशिष्ठ और ८ वामदेव ये अष्टमन्त्री निश्शङ्क हो चेष्टा करते भये और सदा अद्वैतनिष्ठ हुए हैं। इनको कदाचित् स्वरूप से दैतभाव नहीं फुरा है। ये अनामय पद की स्थिति में तृप्त रहकर केवल चिन्मात्र शुद्धपर परमपावनता को प्राप्त हुए हैं।

इति श्रीयोगवाशिष्ठे वैराग्यप्रकरणेकथारम्भवर्णनो नाम प्रथम स्सर्गः॥१॥

भारद्वाज ने पूछा हे भगवन्! जीवन्मुक्त की स्थिति कैसी है और रामजी कैसे जीवन्मुक्त हुए हैं वह आदि से अन्तपर्यन्त सब कहो? वाल्मीकिजी बोले, हे पुत्र! यह जगत् जो भासता है सो वास्तविक कुछ नहीं उत्पन्न हुआ; अविचार करके भासता है और विचार करने से