पृष्ठ:योगवाशिष्ठ भाषा प्रथम भाग.djvu/३२

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योगवाशिष्ठ।

सद्गुण अर्थात् शीलता, सन्तोष, धर्म, उदारता, कोमलता, वैराग्य विचार दयादिक का नाश कर देती है। जब ऐसे गुणों का नाश हुआ तब सुख कहाँ से हो, तब तो परम आपदा ही प्राप्त होती है। इसको परमदुःख का कारण जानकर मैंने त्याग दिया है। हे मुनीश्वर! इस जीव में गुण तबतक है जब तक लक्ष्मी नहीं प्राप्त हुई। जब लक्ष्मी की प्राप्ति हुई तब सब गुण नष्ट हो जाते हैं। जैसे वसन्त ऋतु की मञ्जरी तब तक हरी रहती है जब तक ज्येष्ठ आषाढ़ नहीं आता और जब ज्येष्ठ आषाढ़ आया तब मञ्जरी जल जाती है वैसे ही जब लक्ष्मी की प्राप्ति हुई तब शुभ गुण जल जाते हैं। मधुर वचन तभी तक बोलता है जब तक लक्ष्मी की प्राप्ति नहीं है और जब लक्ष्मी की प्राप्ति हुई तब कोमलता का अभाव होकर कठोर हो जाता है। जैसे जल पतला तब तक रहता है जब तक शीतलता का संयोग नहीं हुआ और जब शीतलता का संयोग होता है तब बरफ होकर कठोर दुःखदायक हो जाता है; वैसे यह जीव लक्ष्मी से जड़ हो जाता है। हे मुनीश्वर! जो कुछ संपदा है वह आपदा का मूल है, क्योंकि जब लक्ष्मी की प्राप्ति होती है तब बड़े-बड़े सुख भोगता है औरजब उसका अभाव होता है तब तृष्णा से जलता है और जन्म से जन्मान्तर आता है। लक्ष्मी की इच्छा करना ही मूर्खता है। यह तो क्षणभंगुर है, इससे भोग उपजते और नष्ट होते हैं। जैसे जल से तरंग उपजत और मिट जाते हैं और जैसे बिजली स्थिर नहीं होती वैसे ही भोग भी स्थिर नहीं रहते। पुरुष में शुभ गुण तब तक हैं जब तक तृष्णा का स्पर्श नहीं और जब तृष्णा हुई तब गुणों का अभाव हो जाता है। जैसे दूध में मधुरता तब तक है जब तक उसे सर्प ने स्पर्श नहीं किया और जब सर्प ने स्पर्श किया तब वही दूध विषरूप हो जाता है।

इति श्रीयोगवाशिष्ठे वैराग्यपकणेरामेणवैराग्यवर्णनन्नामसप्तमस्सर्गः॥७॥

श्रीरामजी बोले, हे मुनीश्वर! लक्ष्मी देखने मात्र ही सुन्दर है। जब इसकी प्राप्ति होती है तब सद्गुणों का नाश कर देती है। जैसे विष की बेल देखने मात्र ही सुन्दर होती है और स्पर्श करने से मार डालती है वैसे ही लक्ष्मी की प्राप्ति होने से जीव आत्मपद से वंचित हो महादीन