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उत्पत्ति प्रकरण।

दूसरा चन्द्रमा, सीपी में रूपा, मृगतृष्णा का जल इत्यादिक विपर्यय भासना भी जाग्रत स्वप्न है। निद्रा में जब मन फुरने लगता है और उससे नाना पदार्थ भासने लगते हैं तो जब जाग उठता है तब कहता है कि मैंने अल्पकाल में अनेक पदार्थ देखे और निद्राकाल में जो पदार्थ देखे थे उनको असत्यरूप जाग्रत् में जानने लगता है। उस निद्राकाल में मन के फुरने का नाम स्वप्ना है। स्वप्न आवे और उसमें यह दृढ़ प्रतीति हो जावे कि दीर्घकाल बीत गया उसका नाम महाजाग्रत् है और महाजाग्रत् में अपना बड़ा वपु देखा और उसमें अहं मम भाव दृढ़ हुआ और आपको सत्य जानकर जन्म-मरण आदिक देखे देह रहे अथवा न रहे, उसका नाम स्वमजाग्रत् है। वह स्वना महाजाग्रत रूप को प्राप्त होता है। इन छः अवस्थाओं का जहाँ प्रभाव हो और जरूप हो उसका नाम सुषुप्ति है। उस अवस्था में घास, पत्थर, वृक्षादिक स्थित है। हे रामजी! यह अज्ञान की सप्तभूमिका कही, उसमें एक-एक में अवस्था भेद है। हे रामचन्द्र! स्वप्न चिरकाल से जाग्रतरूप हो जाता है, उसके अन्तर्गत और स्वम जाग्रत हैं और उसके अन्तर और है। इस प्रकार एक-एक के अन्तर अनेक हैं। यह मोह की घनता है और उससे जीव भ्रमते हैं जैसे जल नीचे-से-नीचे चला जाता है तैसे ही जीव मोह के अनन्तर मोह पाते हैं। हे रामजी! यह तुमसे अज्ञान की अवस्था कही जिसमें नाना प्रकार के मोह और भ्रम विकार हैं। इनसे तुम विचारकर मुक्त हो तब तुम महात्मा पुरुष और प्रात्मविचार करके निर्मल बोधवान होगे और तभी इस भ्रम से तर जावोगे।

इति श्रीयोगवाशिष्ठे उत्पत्तिप्रकरणे अज्ञानभूमिकावर्णनन्नाम
दिनवतितमस्सर्गः॥१२॥

वशिष्ठजी बोले, हे रामचन्द्र! अब तुम ज्ञान की सप्तभूमिका सुनो। भूमिका चित्त की अवस्था को कहते हैं। ज्ञान की भूमिका जानने से जीव फिर मोहरूपी कीचड़ में नहीं डूबता। हे रामचन्द्र! और मतवाले भूमिका को बहुत प्रकार से कहते हैं पर मेरा अभिमत पूछो तो यह है कि इससे सुगम और निर्मल बोध प्राप्त होता है। स्वरूप में जागने का नाम