पृष्ठ:योगवाशिष्ठ भाषा प्रथम भाग.djvu/४१०

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योगवाशिष्ठ।

रामजी! जो सहकारी कारण कोई न हुआ तो जगत् शून्य हुआ ऐसे जानने से सर्व कलङ्क कलना शान्त हो जाती है। हे रामजी! तुम दीर्घ निद्रा में सोये हो, उस निद्रा का प्रभाव करके ज्ञानभूमिका को प्राप्त हो। जाओ। जागे से निःशोक पद प्राप्त होगा।

इति श्रीयोग॰ स्थितिप्रकरणेस्मृतिबीजोपयासोनाम द्वितीयस्सर्गः॥२॥

रामजी ने पूछा, हे भगवन्! महाप्रलय के अन्त और सृष्टि के आदि में जो प्रजापति होता है वह जगत् को पूर्व की स्मृति से उसी भाँति रचता है तो ये जगत् स्मृति रूप क्यों न होवे? वशिष्ठजी बोले कि हे रामजी! महाप्रलय के आदि में प्रजापति स्मरण करके पूर्व की नाई जगत् रचता है जो ऐसे मानिये तो नहीं बनता, क्योंकि महाप्रलय में प्रजापति कहाँ रहता? जो आप ही न रहे उसकी स्मृति कैसे मानिये? जैसे आकाश में वृक्ष नहीं होता तैसे ही महाप्रलय में प्रजापति नहीं होता। फिर रामजी ने पूछा, हे ब्रह्मण्य! जगत् के आदि में जो ब्रह्मा था उसने जगत् रचा, महाप्रलय में उसकी स्मृति का नाश तो नहीं होता, वह तो फिर स्मृति से जगत् रचता है आप कैसे कहते हैं कि नहीं बनता? वशिष्ठजी बोले, हे शुभवत, रामजी! महाप्रलय के पूर्व जो ब्रह्मादिक होते हैं वह महापलय में सब निर्माण हो जाते हैं अर्थात् विदेहमुक्त होते हैं। जो स्मृति करनेवाले अन्तर्धान हो गये स्मृति कहाँ रही और जो स्मृति निर्मूल हुई तो उसको जगत् का कारण कैसे कहिये? महाप्रलय उसका नाम है जहाँ सर्व शब्द अर्थ सहित निर्मूल हो जाते हैं, जहाँ सब अन्तर्धान हो गये तहाँ स्मृति किसकी कहिए और जो स्मृति का अभाव हुआ तो कारण किसका किसकी नाई कहिये? इससे सर्वजगत् चित्त के फुरने मात्र है। जब महाप्रलय होता है तब सब यत्न विना ही मोक्षभागी होते हैं और जो आत्मज्ञान हो तो जगत् के होते भी मोक्षभागी होते हैं पर जो आत्मज्ञान नहीं होता तो जगत् दृढ़ होता है, निवृत्त नहीं होता। जब दृश्य जगत् का प्रभाव होता है तव स्वच्छ चैतन्य सत्ता जो आदि अन्त से रहित है प्रकाशती है और सब जगत् भी वही रूप भासता है सर्व में अनादि सिद्ध ब्रह्मतत्त्व प्रकाशित