पृष्ठ:योगवाशिष्ठ भाषा प्रथम भाग.djvu/८१५

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उपशम प्रकरण। से उखाड़ना कठिन है तैसे ही वासना का त्याग कठिन है । वह वासना मन से होती है, जब तक मन भय नहीं होता तबतक वासना भी क्षय नहीं होती। तत्त्वज्ञान विना मन का नाश नहीं होता। वासना और मन का प्रावरण एक साथ दूर होता है । यह परस्पर कारणरूप है। इससे हे रामजी! तुम पुरुषप्रयत्न करके मन के संकल्प विकल्प को निवृत्त करो और अभ्यास और विचार करके विवेक का उपाय करो और भोगों की वासना दूर से त्यागो-इसी से तुम शान्तिमान होगे । इन तीनों के सम अभ्यास से तत्त्वज्ञान, मनोनाश भोर वासनामय का बारंवार अभ्यास करो। जबतक इनको न साधोगे तबतक भनेक उपायों से भी शान्ति को न प्राप्त होगे। हे रामजी । वासना क्षय हो और मनोनाश और तत्त्वज्ञान से वासना क्षय न करे तो कार्य सिद्ध नहीं होता और जो मनोनाश करे और तत्त्वज्ञान से वासना क्षय न करे तब भी कल्याण न होगा और तत्त्वज्ञान का विचार करे और वासना क्षय न हो तो भी कुशल न होगी। जब इन तीनों का सम अभ्यास हो तब फल की प्राप्ति हो। हे रामजी । एक के सेवन से मिद्धता नहीं प्राप्न होती-जैसे मन्त्र को कोई प्रतिवन्ध लय न करे तो मन्त्र फलदायक नहीं होता और एक-एक चरण पढ़े तो भी फलदायक नहीं होता जबतक सब मन्त्र संध्यादिक एक ठौर नहीं होते तबतक मन्त्र नहीं फुरते. तेसे ही अकेले में कार्य सिद्ध नहीं होता। जब चिरकाल इनको इकट्ठा सेवे तब कार्य हो । जैसे सेनासंयुक्त बड़ा शत्रु हो और उसके मारने को एक शूरमा जावे तो शत्रु को मार नहीं सकता और यदि इकटे सेना पर जा पड़ें तब उसको जीत लेवें, तैसे ही संसाररूपी शत्रु के नाश के लिये जब तत्त्वज्ञान, मनोनाश और वासनाक्षय का इकट्ठा अभ्यास हो तब संसाररूपी शत्रु का नाश हो। हेरामजी जब तीनों का अभ्यास करोगे तब हदय की 'अहं 'मम' प्रन्धि टूट पड़ेगी। अनेक जन्मों की संसारसत्यता जो इसके हृदय में स्थित हो रही है सो अभ्यासयोग से टूट पड़ेगी इससे चलते, बैठते, खाते, पीते, सुनते, सूंघते, स्पर्श करते और जागते इन तीनों का अभ्यास करो। हे रामजी! वासना के त्याग से प्राणस्पन्द रोका जाता है । जब प्राणों