पृष्ठ:योगवासिष्ठ भाषा (दूसरा भाग).pdf/१२६

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जगन्मिथ्यात्वप्रतिपादनवर्णन-निर्वाणप्रकरण ६. (१००७) - शतिरूप जो है मुमुक्षु, अरु मननकलनाकार संयुक्त है, तिनको जीव- न्मुक्ति पदके बोधनिमित्त शास्त्र मोक्षोपाय रचे हैं. ब्रह्मा विष्णु रुद्र इंद्र लोकपालं पंडित पुराण वेद शास्त्र सिद्धांत रचे हैं, तिनविषे यह नाम तीन मैं कहे हैं, चेतन अझ शिव आत्मा परमात्मा ईश्वर सत् चित् आनंद आदिक संज्ञा अनेक केही हैं, शिव आत्मा ब्रह्म परमात्मा आदिक भिन्न भिन्न नाम शास्त्रकारोंने कल्पे हैं, अरु ज्ञानीको कछु भेद नहीं ॥ हे सुनीथर । ऐसा जो देव है, तिसका ज्ञानवान् इसप्रकार अर्चन - करते हैं, जिप्त पदके इम आदिक टहलुए हैं, तिस परमपदको प्राप्त होते हैं । वलिश्च उवाच ।। हे भगवन् ! यह जगत् सब अविद्यमान है, अरु विद्यानकी नाईं स्थित है, सो कैसे हुआ हैं, समस्त कहनेको तुमहीं योग्य हौ ।। ईश्वर उवाच ।। हे मुनीश्वर ! जो ब्रह्म आदिक नाम- कर कहता है, सो शुद्ध केवल संवित् मात्र है, आकाशते भी सूक्ष्म है, जिसके आगे आकाश भी ऐसा स्थूल जैसा होता है, अणुके आगे सुमेरु स्थूछ होता है, तिसविर्षे जब वेदनाशक्ति आभास होकार ऊरी तब तिसका नाम चैतन हुआ, बहुरि अहंताभावको प्राप्त हुआ, जो अहं अस्मि, जैसे स्वप्नविषे पुरुष आपको इस्ती देखने लगे, तैसे आपको अहं मानने लगा,बहुरे देशकाल आकाश आदिक देखने लगा, तब चेत- नकला जीव अवस्थाको प्राप्त भई, अरु वासना करनेहारी भई, जब जीवभाव हुआ, तब बुद्धि निश्चयात्मक होकार स्थित भई, शब्द अरु क्रिया ज्ञानसंयुक्त भई, एक एकसाथ मिलकार शीघ्रही कल्पित भई, तब मन हुआ सो मन संकल्परूपी माषाका बीज है, तब अंतवाहक शरीरविषे आत्मस्वरूप होकार ब्रह्मसत्ता स्थित भई, इसप्रकार यह उत्पन्न भई है, बहुरि वायुसत्ता स्पंद हुई, तिसते स्पर्शसत्ता त्वचा प्रगट भई, बहुरि तेजसत्ता हुई तिसते प्रकाशसत्ता हुई, प्रकाशते नेत्रसत्ता प्रगट भई, बहुरि जलसत्ता जलते स्वादसत्ता,स्वादते रससत्ता ताते जिह्वा प्रगट भई, बहुरि गंधसत्ता गंधते भूमिसत्ता भूमिते घ्राणसत्ता पिंडसत्ता प्रगट भई देशसत्ता कालसत्ता हुई, सर्वसत्ता इनको इकट्ठाकारकै फुरी, जैसे बीज पत्र फूल फलादिकका आश्रय होता है, तैसे यह पुर्य-