पृष्ठ:योगवासिष्ठ भाषा (दूसरा भाग).pdf/१९१

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१ १०७२ ) योगवासिष्ठ । संसार द्वैतरूपके फुरणेते सुषुप्त होना अरु आत्माविषे जागना यही सुषुप्तमौन हैं, द्वैतके फुरणेते रहित होना यही सुषुप्ति है; अरु आत्माविषे जागना यही तेरे ताई कहा है, अरु ऐसे देखना कि, न मेरेविषे जाग्रत् - है, न स्वप्न है, न सुषुप्ति हैं, इस निश्चयविषे स्थित होना यह तुरीयातीत सो पंचम मौन है, ऐसा जो तुरीयातीत पद है, सो अनादि है, अनंत है, अरु जाते रहित है, शुद्ध है, अरु निर्दोष है, इस निश्चयविषे स्थित होना, यह उत्तम मौन है । हे रामजी 1 ज्ञानी इंद्रियों के रोकनेकी इच्छा भी नहीं करता, अरु न विचरनेकी इच्छा करता है, जैसे स्वाभाविक होती है, तिसीविषे स्थित होता है, यह परम मौन है, अरु ज्ञानीको सुखकी इच्छा भी नहीं, दुःखका त्रास भी नहीं, हेयोपादेयते रहित होना यह परम मौन है । हे रामजी ! तुम रघुवंशकुलविषे चद्रमा हौ अपने स्वभा- वविषे स्थित होना प्रम मौन है । हे रामजी । संसारभ्रम मनके फुरणे- कारिकै होता है, सो मिथ्या है वास्तव कछु नहीं, न शरीर सत्य है, न माया सत्य ॥ हे रामजी। तेरा स्वरूप ओंकार है, ओंकारको अंगीकार कारकै स्थित होना,यह परम उत्तम मौन है ॥ राम उवाच ॥ हे भगवन् ! यह जो सब रुद्र तुमने कहे सो रुद्र थे, अथवा रुगण थे । वसिष्ठ उवाच॥ हे रामजी !जिसको रुद्र कहते हैं,तिसीको गण कहते हैं,यह सबही रुद्र हैं। राम उवाच ॥ हे भगवन् ! यह जो तुमने कहा, सब रुद्र हुए, सो यह तो एकचित्त थे सब क्योंकर हुए जैसे दीपकते दीपक होता है, क्या इसी भाँति हुए। वसिष्ठ उवाच॥ हे रामजी ! एक सावरणहै, एक निरावरण हैं, जहाँ शुद्ध अंतःकरण है सो निरावरण, अरु जहाँ मलिन अंतःकरण है, सो सावरण हे, शुद्ध अंतःकरणविषे जैसा निश्चय होता है, तैसा तत्काल आगे सिद्ध होता है, अरु मलिन अंतःकरणका ऊरणा सिद्ध नहीं होता; ताते शुद्ध जो निरावरण रुद्र है, सो आत्मा है, अरु सर्वव्यापी है, जैसा उनका निश्चय होता है, सो सत्य है ॥ राम उवाच ॥ हे भगवन् ! रुद्र सदाशिवकी चेष्टा तौ मलिन है जो फंडोंकी माला गलेविषे धारता है, अरु विभूति लगाई हुई हैं, अरु श्मशानविषे विहरताहै अरु स्त्री । तिसको तुम कैसे कहते हौ कि, शुद्ध अंतःकरण है,