पृष्ठ:योगवासिष्ठ भाषा (दूसरा भाग).pdf/२३०

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चिन्तामणिवृत्तान्तवर्णन-निर्वाणप्रकरण ६. (११११ ) विषे स्थित होता है, अरु दृश्य जो है, चार अंतःकरण, अरु इंद्रियां देह तिनविषे अभिमान करिकै दुःखी सुखी होताहै,इनके दुःखसाथ दुःखी होता है, अरु इनके सुखसाथ सुखी होता है, जैसा जैसा आगे प्रतिबिंब होता है, तैसा तैसा हुःखसुख भासता है, जैसे शुद्ध मणिविषे प्रतिबिंब पडता है, सो अज्ञानकारकै भासता है, ज्ञानकारकै इनका अभाव हो जाता है, अरु जब तिसको ज्ञानरूपका आवरण कारकै आगे पटल होत हैं, तब प्रतिबिंब नहीं पड़ता, ज्ञान कहिये जो देहादिकके अभिमानते रहित होना, जो न देहादिक हैं, अरु न मैं इनकरि केछु करता हौं, जब ऐसे निश्चय होवे तब दुःखसुखका भान नहीं होता, काहेते कि संसारका दुःखसुख इसकी भावनाविषे होता है, जब वासनाते रहित हुआ, तब दुःखसुख भी सब नष्ट हो जाते हैं, जैसे जब वृक्षही जल जाताहै, तब पत्र फूल फल कहां रहैं, तैसे अज्ञानरूप वासनाते दग्ध हुए, दुःखसुख कहां रहें, 1 बार राजाने कहा ॥ हे भगवन् ! तुम्हारे वचन श्रवणकरते हुए मैं तृप्त नहीं होता, जैसे मेघका शब्द सुनेते मोर तृप्त नहीं होता, ताते कहौ, कि तुम्हारी उत्पत्ति केसे भई, तब देवपुत्रने कहा ॥ हे राजन् ! जो कोङ प्रश्न करता है, तब बड़े तिसका निरादर नहीं करते, ताते तू जो पूछता है, सो मैं कहता हौं । हेराजर्षि ! वह वीर्य था सो नारदमुनिने एक मटेकीविषे पाया, अरु वह कैसी मटकी थी स्वर्णवद जिसका उज्वल चमत्कार, तिसविषे वीर्यं पायकरि तिसके ऊपर दूध पाया, अरु ऊपर उसके दूध पाया मटकीको पूर्ण किया, अरु वीर्यको एक कोणकी ओर किया, बहार मंत्रोंका उच्चार किया, अरु आहुति किये,भलीप्रकार पूजन किया, जब एक मास व्यतीत भया, तब मटकीते बालक प्रगट हुआ, सो कैसा बालक, जैसा चंद्रमा क्षीरसमुद्रते निकसा, तिस बाल कको लेकर नारद आकाशको उडताभया, तब नारद उसको जो पिता है ब्रह्माजी तिसके पास ले आया, अरु आयकार नमस्कार किया,तबबाल कुको पितामहने गोदविषे बैठाया, अरु आशीर्वाद कियाकि,तू सर्वज्ञ होवैगा अरु शीघ्रही अपने स्वरूपको प्राप्त होवैगा, अरु कुंभते जो उपजा