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अज्ञानमाहात्म्यवर्णन–निर्वाणप्रकरण ६.

बोलना भी व्यर्थ है, जैसे यज्ञविषे श्वानको बुलाना निष्फल है तैसे उनके साथ बोलना निष्फल है॥ हे रामजी। जो अज्ञानी जीव हैं, सो संसारविषे आते जाते जन्मते मरते हैं, शरीरविषे आस्था करते हैं अरु पुत्रदारा बांधव धनादिकविषे ममत्वबुद्धि करते हैं, इस मिथ्या दृष्टिकरिकै दुःख पाते हैं, मुक्ति कदाचित् नहीं होती काहेते कि, अनात्माविषे आत्मबुद्धिको त्याग नहीं करते, अरुममताबुद्धिविषे दृढ़ रहते हैं, इसीते मुक्ति नहीं होती॥ हे रामजी। जो अज्ञानी हैं, सो असत् पदार्थको देखते हैं, अरु वस्तुरूपकी ओरते अंध हैं, इसकरि परमार्थ धनते विमुख रहते हैं, नरकका सार जो स्त्रियादिक हैं, तिनविषे प्रीति करते हैं, अरू तिनको देखिकरि प्रसन्न होते हैं, जो नरकका साधन हैं, जैसे मेघको देखकर मोर प्रसन्न होता है, जैसे स्त्रियादिकनको देखिकरि मूर्ख प्रसन्न होते हैं॥ हे रामजी। मूर्खके मारनेनिमित्त विपकी तिनके वल्ली है, अरु नेत्ररूप तिसके फूल है, होठरूपी पत्र हैं, स्तनरूपी तिनके गुच्छे हैं, अरु अज्ञानरूपी भँवरे तहाँ विराजमान होते हैं, अरु नाशको पाते हैं. अरु मतिरूपी तलाव है अरु हर्षरूपी तिसविषे कमल हैं, चित्तरूपी भँवरा तह सदा रहता है, अरु अज्ञानरूपी नदी है, दुःखरूपी तिसविषे लहरी हैं, अरु तृष्णारूपी बुद्बुदे , ऐसी जो नदी है, सो मरणरूपी वडवाग्निविषे जाय पड़ैगी॥ हे रामजी। जब जन्म लेता है, तब महागर्भ अग्निते जलता हुआ निकसता है, सो महामूर्ख अवस्था निरस कर दुःखी होता है, अरु जब यौवन अवस्थाको प्राप्त होता है। तब विषयको सेवता है, सो भी दुःखका कारण होते हैं, बहुरि वृद्ध अवस्थाको प्राप्त होता है, तब शरीर अशक्त होता है, अरु अंतरते तृष्णा पडी जलावती है, इस प्रकार जन्ममरण अवस्थाविषे पड़े भटकते हैं॥ हे रामजी। संसाररूपी कूप है, तिसविषे मोहरूपी घटमाला है, अरु तृष्णा वासनारूपी रसडीसे बाँधे हुये जीवरूपी टीड भ्रमते हैं, अरु ज्ञानवान‍्को संसार कोऊ दुःख नहीं देता गोपदकी नाईं तुच्छ होजाता है, अरु अज्ञानीको समुद्रवत् तरणा कठिन होता है, अपने अंतरही प्रेमको देखता है, निकसि नहीं सकता, थोडाभी उसको बहुत