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अज्ञानमाहात्म्यवर्णन–निर्वाणप्रकरण ६.

इसकी इच्छा करते हैं, जैसे सर्पिणीसे कोऊ हित करैगा सो नाशको प्राप्त होवैगा; तैसे इससे हित किये नाश होवैगा, जैसे कदलीवनका हस्ती महाबली कामकरि नीच गतिको पाता है, अरु संकट में पडता है, अंकुशको सहता है, अपमानको प्राप्त होता है, सो एक हस्तिनीके हितकरि ऐसी गतिको प्राप्त होता है, तैसे यह जीव स्त्रीकी इच्छा करिकै अनेक दुःखको प्राप्त होते हैं, जैसे दीपकको रमणीय जानकरि तिसविषे पतंग प्रवेश करता, अरु नाशको प्राप्त होता है, तैसे यह जीव स्त्रीकी इच्छा करता हैं, तिसके संगकार नाशको प्राप्त होता है, अरु लक्ष्मीका आश्रय करिकै जो सुखकी इच्छा करता है, सो भी सुखी न होवैगा, जैसे पहाड़ दूरते देखनेमात्र सुंदर भासता है तैसे यह भी देखनेमात्र सुंदर लगती है, और लक्ष्मीका आश्रय करिकै सुखकी इच्छा करै सो न होवैगा, अंत दुःखको प्राप्त होवैगा, जब लक्ष्मी प्राप्त होती है तब अनर्थ पापको करने लगता है, अरु दुःखका पात्र होता है, जब जाती है, तब दुःखको दे जाती है, तिसकरि जलता रहता है॥ हे रामजी! जगत‍्विषे जो सुखकी इच्छा करै, सो न होवैगा, प्रथम जन्म लेता है, तब भी दुःखसाथ जन्म लेता है, बहुरि जन्मकरि मूर्ख नीच बालक अवस्थाको प्राप्त होता है तिसविषे विचार कछु नहीं होता, तिसकरि दुःख पाता है, अरु शक्ति कछु नहीं होती, तिसकरि दुःख पाता है, जब यौवन अवस्थारूपी रात्रि आती है, तब तिसविषे काम क्रोध लोभ मोहरूपी निशाचर आय विचरते हैं, अरु तृष्णारूपी पिशाचिनी आय विचरती है, विवेकरूपी चंद्रमा उदय नहीं होता,तब अंधकारविषे सब क्रीडा करते हैं॥ हे रामजी! यौवनअवस्थारूपी वर्षाकाल है, तिस विषे बुद्धि आदिक नदियां मलिनभावको प्राप्त होती हैं, अरु कामरूपी मेघ गर्जता है, तृष्णारूपी मोरनी तिसको देखिकार प्रसन्न होती है; अरु नृत्य करती है, अरु लोभरूपी दुजाग आवते हैं, अरु शब्द करते हैं, इत्यादिक अनर्थका बीज होताहै, बहुरि यौवन अवस्थारूपी चूहेको जरारूपी बिल्ली भोजनकरि लेती है, अंग महाजर्जरीभूत हो जाते हैं, शरीर