पृष्ठ:योगवासिष्ठ भाषा (दूसरा भाग).pdf/३४०

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कमकर्मविचारवर्णन-निर्वाणप्रकरण ६. ( १२२१ ) रिके कहौ, जो कमविना कैसे उत्पन्न होते हैं, अरु कर्मोंकार कैसे उत्पन्न होते हैं, कैसे कैसे हुए हैं, कैसे होते हैं, अरु कैसे आगे होने हैं सोकहो ? वसिष्ठ उवाच ॥ हे रामजी ! आत्मा चिदाकाश है, अपने आपविषे स्थित है, जैसे अग्नि अपनी उष्णताविषे स्थित है, तैसे आत्मा अपने स्वभावविषे स्थित है, अनंत है, अरु अविनाशी हैं, तिसविर्षे ऊरणाशक्ति स्वाभाविक स्थित है, जैसे पवनविषे स्पशक्ति स्वाभाविक है, जैसे फूलविषे सुगंध स्वाभाविक रहती है, तैसे आत्माविषे कुरणाशक्ति है । हे रामजी ! ऊरणाशक्ति जैसे आय ऊहै, तिस शब्दकी अपेक्षाकार तब आकाश हुआ जब स्पर्शकी अपेक्षाकरी तब पवन प्रगट भया, इसीप्रकार पंचतन्मात्रा हो आई, सो शुद्ध संविविषे जो आदि ऊरणा हुआ, प्रथम अंतवाहक शरीर हुए, तिनका निश्चय आत्माविषे रहा कि, हम आत्मा हैं, संपूर्ण विश्व हमारा संकल्प है । हे रामजी ! कई इसप्रकार उत्पन्न होकर अंतवाहकते बडार विदेहमुक्तिको प्राप्त भये, जैसे जलसों बर्फ होकर सूर्य के तेजते शीग्रही जल हो जाती है, तैसे शीत्रही विदेहमुक्त हुए, अरु कई अंतवाहक शरीरविषे स्थित भये, उनका निश्चय आत्माविषे रहा, अरु कई अंतवाहकते अधिभूतक हो गए, जबलग अंतवाहकविषे स्मरण रहा, तबलग अंतवाहक रहे, जब स्वरूपका प्रमाद भया,अरु संकल्पकारि जो भूत रचे थे, तिनविषे दृढ़ निश्चय भयो, अरु जानत भए कि, यह हम हैं, तब अधिभूतक होगए, जैसे ब्राह्मण शूद्रोंके कर्म करने लगे, उसके निश्चयविधे हो जावै कि, मेरा यही कर्म है, अरु जैसे शीतकारिकै जलते बर्फ हो जाती है तैसे संविविषे दृढ संकल्प हुआ, तब आपको अधिभूतक जानत भया ॥ हे रामजी 1 आदि परमात्माते जो फुरे हैं, सो कर्मविना उत्पन्न हुए हैं, तिनका कर्म कोऊनहीं, जो अंतवाहकविषे रहैं; तिनकी ईश्वरसंज्ञा भई, बहुरि उनके संकल्पकार जीव उपजे, तिनका कारण ईश्वर हुआ, अरु आगे जीवकलनाकार उनका ऊरणा कर्म हुए, आगे जैसे कर्म करते हैं, संकल्पकारि तैसे शरीर धारते हैं। हे रामजी ! आत्माते जो जीव उपजे हैं, सो आदि अकारण होते हैं, जो आज उपजे हैं, तौभी अरु चिर