पृष्ठ:योगवासिष्ठ भाषा (दूसरा भाग).pdf/६१०

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वासनाक्षयप्रतिपादनवर्णन-निर्वाणकरण, उत्तराई ६. (१४९१) तब मैं ब्रह्मपुरीको देखत भया कि, क्या दशा हैं, जैसे प्रातःकालका सूर्य अपनी प्रतिभाको पसारता है, तैसे ब्रह्मपुरीको दृष्टि पसारिकै देखत भया, तब ब्रह्माजी मुझको परम समाधिविषे दृष्ट आया, अरु अपर जो जीवन्मुक्त ब्रह्माका परिवार था, सब पद्मासनकारि परम समाधि लगाइ बैठे, जैसे पत्थरके ऊपर मूर्तियां होवें, तैसेही सब परमसमाधिविषे अचल बैठे देखे, जो संवेदन फुरणेते रहित स्थित हैं सोकिंचन कौन हैं, चारों वेद मूर्तिधारी स्थित हैं, शुक्र अरु बृहस्पति अरु वरुण कुबेर इंद्र यम चंद्रमा अग्नि देवता इत्यादि ऋषीश्वर मुनीश्वर जीवन्मुक्त जो थे तिन सबको मैं ध्यानविषे स्थित देखत भया, द्वादश सूर्य जो विश्वको तपाते थे सो पद्मासन बाँधकार समाधिविषे स्थित हुये हैं, एक मुहूर्तपर्यंत मैं इसी प्रकार देखत भया, जब एक मुहूर्त बीता तब सूर्यविना सब अंतर्धान होगये, जैसे स्वप्रकी सृष्टि अपने विद्यमान होती हैं, अरु जागेते अभावना हो जाती है, तैसे सब अंतर्धान हो गये, मेरे देखते देखते ब्रह्मपुरी शून्य वनकी नाईं होगई, जैसे पत्तन राजमार्ग प्रलय हो जाते हैं, तैसे प्रलय होगई ॥ हे रामजी ! जैसे स्वप्नविषे मेघ गर्जते दृष्ट आते हैं, अरु जागेते अभाव हो जाते हैं, यह दृष्टांत तौ बालक भी जाने हैं, जो प्रत्यक्ष अनुभवको छिपाते हैं, सो मूर्ख हैं, मैं अनुभवकारै भी जानता हौं अरु स्मृति भी होती है, अरु सुना भी है, जबलग निद्रा है, तबलग स्वप्नकी सृष्टि भासती है, जागेते स्वप्नकी सृष्टिका अभाव होता है, तैसे जबलग ब्राह्मीकी वासना थी, तबलग सृष्टि थी, जब * वासना क्षय हुई, तब सृष्टि कहां रहै, जब वासना नष्ट भई तब अंतवाहक अधिभूत शरीर नहीं रहते ॥ हे रामजी ! जब शुद्ध मात्र पदते चित्तशक्ति फुरती है, तब पिंडाकर हो भासती है, जबलग वह शरीर है, तबलग संसार उपजता भी है, नष्ट भी होता है, जैसे ब्रह्माकी सुषुप्तिविषे जगत् लीन हो जाता हैं, अरु जाग्रतविषे उत्पन्न होता है, काहेते जो ब्रह्माका शरीर सुषुप्तिविषे लीन होना इसीका नाम प्रलय है, अरु जो कहिये इस शरीरके नाशका नाम महाप्रलय होवै तौ ऐसे नहीं. काहेते जो मृतक हुए शरीरका नाश होता है, अरु बहुरि लोक भासता