पृष्ठ:योगवासिष्ठ भाषा (दूसरा भाग).pdf/६१६

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देवीरुद्रोपाख्यानवर्णन-निर्वाणप्रकरण,उत्तराई ६. (१४९७ ) शताधिकषट्नवतितमः सर्गः १९६. देवीरुद्रोपाख्यानवर्णनम् । वसिष्ठ उवाच ॥ हे रामजी ! रुद्र तौ बडा भयानकरूप मैं देखा था, अरु नेत्र बडे तेजकर पूर्ण चंद्रमा सूर्य अग्नि यह तीनों नेत्रहैं, अरु बड़ा भयानकरूप मानौ महाप्रलयके समुद्र मूर्ति धारिकै स्थित हुए हैं, अरु रुडकी माला कण्ठविषे धारी हुई ऐसा रुद्र स्थितथा, अरु तिसकी परछाया जो निकसे बडी अरु श्यामरूपी तिसको देखिकर मैं आश्चर्यवान् हुआ कि, यहां सूर्य भी नहीं, अग्नि भी नहीं, अपर किसीका प्रकाश भी नहीं, यह परछाया किसप्रकार है, अरु क्या है, ऐसे देखता था, जो परछाया नृत्य करने लगी, तब तिस परछायेते एक स्त्री निकसि आई, शरीर दुर्बल जैसा नाडी निकसी हुई दृष्ट आवै, अरु बडा ऊंचा आकार कृष्णवर्ण मानो अँधेरी रात्रि मूर्ति धारिकै स्थित भई है, सुमेरु पर्वतकी नई आकार अरु तीन नेत्र बडी भुजा जिसकी ऊँची ग्रीवा - मानों प्रलयकालके मेघ मूर्ति धारिकै आपही स्थित भये हैं, अरु गलेविषे रुद्राक्षकी माला अरु रुंडकी माला पड़ी हुई इत्यादिक विकराल स्वभाव तिसको देखत भयो, अरु जिसकी बड़ी भुजा अरु हाथनविष त्रिशूल खङ्ग बाण ध्वज ऊखल मूशल आदिक आयुध हैं, ऐसा भयानक आकार देखिकर मैं विचार किया कि, कालीभवानी हैं, तिसको जानकार नमस्कार किया, अरु बडा श्याम आकार है। जिसका जैसे अग्निके जलेहुए पर्वतके शिखर श्याम होते हैं, तैसे श्याम आकार हैं, अरु मस्तकविषे तीसरा नेत्र वडवाग्निकी नाई तेजवान् निकसा है, कबहूँ दो भुजा दृष्ट आवें, कबहूँ सहस्र भुजा दृष्ट आवें कबहूँ अनंत भुजा दृष्ट आवै, कबहूँ एक एक भुजा दृष्ट आवै, कबहूँ दो भुजा आवें, कबहूँ कोऊ शुजा दृष्ट न आवै, कबहूँ शिर पाद कोऊ दृष्ट न आवें, एकबुत जैसा भासै; इसप्रकार करिकै नृत्य करै, ज्यों ज्यों नृत्य करे, त्यों त्यों शरीर स्थूल दृष्ट आवै, मानौ आकाशको भी अच्छा