पृष्ठ:योगवासिष्ठ भाषा (दूसरा भाग).pdf/७०३

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

________________

यॊगवासिष्ठ । रक्षाके निमित्तं गया था सो मार्गेहीविषे मृतक भया, ताते दोनोंकी रक्षाके निमित्त सेना भेजो कि शत्रु दृढ आनि हुआ है, विलंबका समय नहीं, शीघ्रही सेना पठावडु ॥ हे रामजी ! इसप्रकार राजा सुनकर बाहर निकसा, अरु कहने लगा,सब सेना मेरेपास आवै, अरु दिशाकी रक्षाके निमित्त जावै, बडे शस्त्र ले जावहु, हस्ती घोडा रथ आदिक सेना ले जावहु ॥ हे रामजी ! इसप्रकार राजा कहता था, कि एकअपर पुरुष आया, अरु कहत भया॥हे भगवन्! उत्तर दिशाकी ओरजोतुम्हारा मंडलेश्वर था, तिसके ऊपर अपर शत्रु आनि पड़ा है, बडा युद्ध होता हैं, ताते उसकी रक्षाके निमित्त सेना भेजहु विलंबका समय नहीं, शीघ्रही भेजहु, अरु आगे कई दुष्ट चले आते हैं, मैं बहुरि जाता हौं कि, मेरा स्वामी युद्ध करता है । हे रामजी ! इसप्रकार कहिकार वह गया, तब द्वारपाल आयकार कहत भया ॥ हे भगवन् ! उत्तर दिशाका मंडलेश्वर आया है, आज्ञा होवै तौ ले आऊ, जब राजाने कहा, ले आवडु, वहां ले आया, राजाके सन्मुख आयकार प्रणाम किया, राजा देखत भया, कि अंग ठूटि गये हैं; अरु सुखते रुधिर चला जाता है, ऐसी अवस्थामें भी धैर्यसंयुक्त मंडलेश्वर कहत भया । हे भगवन् ! यह मेरे अंगका हाल भया है, मैं तुम्हारा देश राखनेको चला था, अरु मेरे ऊपर शत्रु आनि पडा, मेरी सेना थोडी थी, इस कारणते दौडिकारे तुम्हारे पास आया हौं कि प्रजाकी रक्षा करहु ॥ है। रामजी । जब इसप्रकार उसने कहा, तब राजाने सब मंत्री चुलाये, मंत्री राजापास आये, अरु कहत भये । हे भगवन् ! अब तीन उपाय छोडहु, अरु एक उपाय कर,एक नम्रता छोडहु,दूसरा धन देना छोडहु, अरु बुद्धिभेद भी छोडहु ये तीनों अब नहीं चाहिये काहेते कि, नम्रता माननेवाले नहीं,यह नीच पापी है,अरु धन देना इसकारणते नहीं चाहिये कि, यह आधीन है, अरु बुद्धिकार भेद भी नहीं जानते, जो सबमिलि इकडे भये हैं, ताते यह तीनों उपाय छोडहु, अरु एक उपाय करहु, कि युद्धही होवे, विलंबका समय नहीं, उनकी सेना अब निकट आई है, अब उत्साह सहित कर्म करना है, जो प्राणकी रक्षा नहीं चाहनी ॥