पृष्ठ:योगवासिष्ठ भाषा (दूसरा भाग).pdf/७१२

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जीवन्मुक्तलक्षणवर्णन-निर्वाणप्रकरण, उत्तराई ६. (१५९३) द्वीप है, बहुरि समुद्र है, सप्तद्वीप सात समुद्र हैं, तिनके पार क्या है, इसप्रकार सर्व दृश्य देखनेकी इच्छा करिकै अग्निदेवताका आवाहन किया तब इनकी दृढ भावना कारकै अग्निदेवता सन्मुख आनि स्थित भया अरु कहत भया । हे राजन् ! जो कछु तुमको वाछ है सो मांगौ तब राजाने कहा। हे भगवन् । जो ईश्वरको माया पांचभौतिक दृश्यविषे भूत हैं। तिनके देखनेकी हमारी इच्छा पूर्ण करणेहारे तुम हौ । हे देव ! हम इस शरीर साथ दृश्य देखने जावें, जब यह शरीर चलनेते रहित होवे, तब मंत्र सत्ता करिकै जावें, जहां मंत्रकी गम भी न होवे, तहां सिद्धता कारकै जावें, जहां सिद्धताकी गम भी न होवे, तहाँ मनके वेगकार जावें, मृत भी होय न जावें, यह वर हमको देवहु ।। हे रामजी जब इसप्रकार राजाने कहा, तब असिने कहा ऐसेही होवै, इसप्रकार कहिकारि अग्नि अंतर्धान हो गया, जैसे समुद्रसों तरंग उठिकार बहुरि लय हो जावै, तैसे अग्नि अंतर्धान हो गया, जब राजा विपश्चित वरको पायकार चलनेको समर्थ भये, तब जेते कछु मंत्री मित्र थे सो रुदन करने लगे ॥ हे राजन् ! तुमने यह क्या निश्चय किया है, ईश्वरकी मायाका अंत किसीने नहीं पाया, तुम चलो अपने स्थानको, यह क्या निश्चय तुमने धारा है। है रामजी । इसप्रकार मंत्री कहते रहे, परंतु राजा उनको आज्ञा देकार एक एक दिशाके समुद्रविषे प्रवेश किया, चारों दिशाविषे चारों राजा प्रवेश करत भये, जो बड़े बड़े शक्तिवान् गुणज्ञ मंत्री थे सो साथही चले, तब राजा मंत्रशक्ति कारकै समुद्रको लंचि गया, जैसे कहूँ पृथ्वी ऊपर चलै तैसे चला गया; अपर द्वीपविषे जाय निकसा, बार बड़ा समुद्र या तिसविर्षे जाय प्रवेश किया, अरु बड़े तरंग उछले जिनका सौ योजनपर्यंत विस्तार है, कभी अधको कभी ऊर्ध्वकोजावै ।। हे रामजी। ऐसे तरंग उछले मानौ पर्वत उछलते हैं, जब ऊर्ध्वको उछलैं तब स्वर्गपर्यंत उछलते भासे, अरु जब अधको जावें तब पातालपर्यंत चलते भालें, जैसे तृण फिरता है, तैसे राजा फिरै, इसप्रकार कष्टते रहित समुद्रको लंचि गये, अरु दिशाको लंधि गये परंतु मध्य जो वृत्तांत हुआ है, सो सुन, क्षीरसमुद्रविषे एक मच्छ रहता था, कैसा मच्छ था कि, सर्वदेवता