पृष्ठ:योगवासिष्ठ भाषा (दूसरा भाग).pdf/७३७

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(१६१८) - योगवासिष्ठ । कहूँ पाई न जावै, एक अंगहीकारिकै कहूँ पृथ्वी छपि गई, ऐसे देखकर विद्याधर देवता गंधर्व सिद्ध इनते लेकार नभचर स्तुति करने लगे । हे। अंबे चंडिका ! अपने गणको साथ लेकर इस उपद्रवते हमारी रक्षा करहु; हम तेरी शरण आये हैं ॥ हे राजन् ! जब इसप्रकार स्तुति कारकै देवता आराधन करने लगे, तब चंडिका अपने गणनको लेकर आकाशमागैसों आती भई, यक्ष वैताल भैरव आदिक गण साथ ले आई, जैसे मेघ सर्व दिशाको आच्छादि लेता है, तैसे सर्व ओरते गण आये अरु आकाशको आच्छादि लिया, अरु चंडिका बडे तेज़रूपको धारे हुए चली आवै, मानौ अग्निकी नदी चली आती है, रक्त नेत्र हैं, शिर उपर पके केश हैं, अरु चैत दूत हैं, अरु बडे शस्त्र धारे हुए है, अरु कई कोटि योजनपर्यंत तिसका विस्तार है, सब दिशा आकाशशरीरकार आच्छादित कर लिया है,अरु कंठविषेरुडकी माला है,अरु सब मुडदे वाहनपर आरूढ हुई है, अरु परमात्मपदविषे तिसकी स्थिति है, अरु हृदय प्रकाशसंयुक्त शरीर है, सूर्य चंद्रमा अग्नि आदिकके प्रकाशको भी लज्जित किया है. अरु हाथविषे खङ्ग मुशल ध्वजा ऊखल आदिक नानाप्रकारके शस्त्र धारे हैं, अरु आकाशविषे तारागणकी नई गये हैं, इसप्रकार गणनसहित चली आती है, मानौ समुद्रते निकसी वडवाग्नि चली आती हैं, जब इसके निकट आये तब देवता बहुरि प्रार्थना करने लगे॥हे अंबे ! इस शवको नाश करहु, अपने गणनको आज्ञा करहु जो इसको भोजन करें, हम इसको देखकर बडे शोकको प्राप्त हुए हैं, हम तेरी शरण हैं, इस उपद्रवते हमारी रक्षा करु ॥ हे राजा दशरथ ! जब इसप्रकार देवतोंने कहा, तब चंडिका ग्राणवायुको बँचती भई, तिसकरि देवीके बैंचनेते जेता कछु शवविषे रक्त था सो सब पान कर लिया, जैसे समुद्रको अगस्त्यने पान किया है, तैसे पान कार लिया, तिसकार देवीका उदर अरु अंग सब भरे पूर्ण हो गये, अरु नेत्र लाल हो आये, तब देवी नृत्य करने लगी अरु अपर सब शवको भोजन करने लगे, कई मुखको लगे, कई भुजाको, कई उदरको, कई वक्षःस्थलको, कई दंगको, कई चरणको इसप्रकार सब अंगको गण. भोजन करने लगे, कई गण आज्ञा लेकर आकाशविधे