पृष्ठ:योगवासिष्ठ भाषा (दूसरा भाग).pdf/७७१

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( १६५२) योगवासिष्ठ । ग्रहण कारकै चित्तकी वृत्ति बाह्यनिकसती है,तब जाग्रत् जगत् हो भासता है,अरु जब तन्मात्राको लेकर चित्तकी वृत्ति ओजधातुविषे फुरती तब स्वप्न भासताहै, अरु जब ओज धातुके ऊपर अन्न आदिक द्रव्यकाबोध आनि पड़ता है,तब सुषुप्ति होती है, अरु जब निद्राका अरु जाग्रतका बल होता है,तब दोनों भासतेहैं,अरु जब दोनोंविषे एकका बलअधिक होता है, तब वही भासता है, जाग्रत् अथवा सुषुप्ति अरु जब निद्वाते रहित मंद संकल्प होता है, तब तिसको मनोराज्य कहता है, अरु जब बाह्य विषयको त्यागिकार चित्तकी वृत्ति अंतर्मुख होती है, तब स्वप्न होता है, तहां फिर जिस सिद्धाँतविषे जाता है, तिस अनुसार अंतर जगत् भासता है, कफके बलकार चंद्रमा अरु क्षीरसमुद्र नदियां ताल जलसाथ पूर्ण अरु वृक्ष फूल फल बगीचे सुंदर वन हिमालय कल्पवृक्ष तमाल सुन्दर स्त्रियाँ अरु वल्लियां बावलियां इत्यादि सुन्दर अरु शीतल स्थान देखता है, जब पित्तका बल अग्नि होता है, तब सूर्य अग्नि अरु सूखे वृक्ष फल दास देखता है, अरु संध्याकालके मेघकी लाली देखता है, वन स्थानको अग्नि लगी देखता है, पृथ्वी अरु रेत तपी हुई देखता है, मरुस्थलकी नदी दृष्ट आती है, जल उष्ण लगता है, हिमालयका शिखर उष्ण लगता है, इनते आदि लेकर उष्ण पदार्थ दृष्ट आते हैं, अरु जब वायुका बल अधिक होता है, तब स्वप्नविषे आँधी वायुको देखता है, पाषाणकी वर्षा होती दृष्ट आती है, अरु अंधे कूपविषे गिरता है, हस्ती घोडे उड़ते दृष्ट आते हैं, आपको उड़ता फिरता देखता है, अप्सराके पाछे दौडता है, पहाड़की वर्षा होती है, वायु तीक्ष्ण वेगकरि चलता है, अन्नते आदि लेकर पदार्थ चलते दृष्ट आते हैं, विपरीत होकर 'दृष्ट भासते हैं, इसप्रकार वात पित्त कफकारकै स्वप्नविषे जगत् देखता है, जिसका बले विशेष होता है, तिस धर्मविषे दृष्ट आता है, वासनाके अनुसार घट बढ राजसी तामसी सात्त्विकी पदार्थको देखता है, जब तीनों इकड़े होकार कोपते हैं, तब प्रलयकाल दृष्ट आता है ॥ हे वधिक ! जबलग वात पित्त कफके अंश साथ मिला हुआ पुर्यष्टक कैफके स्थानविषे प्रवेश करता है, तबलग समान जलके क्षोभ भासते हैं, इसप्रकार