पृष्ठ:योगवासिष्ठ भाषा (दूसरा भाग).pdf/८२६

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बिकोपाख्यानसमाप्तिवर्णन-निर्वाणप्रकरण, उत्तरार्द्ध ६, (१७०७) निरासाधहे,अर्थ यह कि,अणुअणुकर पुष्ट नहीं भई,अपनीसत्ताकरि परिपूर्ण है, अरु बहुत सुंदर है, जैसे शालिग्रामकी प्रतिमा होती है, तैसे सुंदर हैं, शालिग्रामके ऊपर शंख चक्र गदा पद्मकी रेखा होती हैं, तैसे उसके ऊपर रेखा हैं, अरु वहीरूप है, अरु वज्रते भी क्रूर है, शिलाकी नाईं निर्विकार है, अरु निराकार है, अचेतन है, अरु परमार्थ है, यह जो कछु चेतनसत्ता भासती है, सो उसके ऊपर रेखा हैं, अनंत कप बीतिगये। परंतु तिसका नाश नहीं होता, अविनाशी है, पृथ्वी, आप, तेज, वायु, आकाश यह सब उसके ऊपररेखा हैं, अरु आप पृथ्वी आदिक भूतते अहित है, अरु शिलावत है,अरु इन रेखाओंको जीवितकीनाईचेततीहै । राम उवाच ।। हे भगवन् ! जो वह अचेतन हैं, अरु शिलाकी नई निविकार है, तब उसविषे चेतनता कहाँने आई, जिसकारि जीवितधर्मा हुई, वह तो अचेतन थी। ॥ वसिष्ठ उवाच ॥ हे रामजी । वह तौ न चेतन है, ने जड है, शिलारूप है, पत्थरते भी उज्वल हैं, अरु यह चेतनता जो तुम कहते हौ, सो चेतनता स्वभावकारिके इष्ट आती है, जैसे जलका स्वभाव इवीभूत होता है, तैसे चेतनताभी इसका स्वभाव है, जैसे जलते तरंग स्वाभाविक भासते हैं, तैसे इसते चेतनता स्वाभाविक भासतीहै, परंतु भिन्न कछु नहीं, सदा अपने आपविषे स्थित हैं, अरु किसीकार जानी नहीं जाती अबलग किसीने जानी नहीं ।। राम उवाच ॥ है। भगवन् । किसीने उसको देखो भी है, अथवा नहीं देखी, अरु किसी करि वह भंग भी हुई है कि नहीं हुई ॥ वसिष्ठ उवाच ॥ हे रामजी । मैं उस शिलाको देखी हैं, जो तुम भी उस शिलाको देखनेका अभ्यास करौगे तब तुम भी देखौगे, परम शुद्ध है; तिसको मैल कदाचित् नहीं लगती, चिह्नते रहित है, पोलते रहिन, आदि मध्य अंतते रहित है, तिसके भेदनेकोन कोङ समर्थ है, अरु न वह भेदने योग्य हैं, अरु तिसते कोऊ अन्य होवै तौ तिसको भेदै, यह जेते- पदार्थ हैं, सो सब उसीकी रेखा हैं, सो-अनेक उसकी रेखा हैं, पृथ्वी, पर्वत, वृक्ष, आप, तेज, वायु, आकाश, देवता, दानव, सूर्य, चंद्रमा यहु उसमें रेखा हैं,