पृष्ठ:योगवासिष्ठ भाषा (दूसरा भाग).pdf/८३०

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जास्वप्नसृषुह्यभाववर्णन-निर्वाणकरण, उत्तराई ६.( १७११) तिसका नाम है, जहाँ कछु अनुभव होवे, सो अनुभवसत्ता सदा जाग्रतरूप है, जैसा पदार्थ आगे आता है, तिसीका अनुभव करता है, ताते सर्वदा सर्वकाल जाग्रत है, अथवासर्वदाकाल स्वप्न है, स्वप्न उसका नाम है, जहां पदार्थ विपर्यय भासै हैं, सो जेते कछु पदार्थभासते हैं सो विप पैंयही भासते हैं, विर्ययते रहित आत्मा है, तिसविषे जो पदार्थ भासते हैं, सो विपर्यय हैं, ताते सर्व कालविषे स्वप्नही है,अथवा सर्वकाल सुषुप्तिही है, सुषुप्ति तिसका नाम है, जहाँ अज्ञानवृत्तिहोवे, सो अज्ञान कहता है मैं आपको भी नहीं जानता, न जाननेकार सर्वदाकाल सुषुप्ति है, अथवा सर्वकाल तुरीया है, तुरीया उसका नाम है, जो साक्षीभूत सत्ता होवे, जाग्रत स्वप्न सुषुप्ति अवस्थाका जिसविषे अनुभव होता है, सो सर्वदा काल सबका अनुभव करता है, सो प्रत्यक् चेतन है, ताते सर्वदाकाल विषे तुरीया पद है, अथवा सर्वदाकाल तुरीयातीत पद है, तुरीयातीत तिसको कहते हैं, जो अद्वैतसत्ता है, जिसके पास द्वैत कछु नहीं, सो सर्वदाकाल अद्वैतसत्ता है, तिसविषे जगत्का अत्यंत अभाव है; जैसे मरुस्थलविषे जलका अभाव हैं, ताते सर्वदाकालविषे तुरीयातीत पद है, अरुजो सुझते पूँछे तौ ॥हे रामजी! मुझको तरंग बुद्बुदे झाग आवर्त्त कछु नहीं भासते, सर्वदाकाल चिदू समुद्रही भासता है, तिसते इतर कछु नहीं, उदय अस्तते रहित आत्मसत्ता अपने आपविष स्थित है, अरु पृथ्वी आदिक तत्त्व जो भासते हैं, सो भी कछु उपजे नहीं,आत्मसत्ताका किंचन इसप्रकार भासता है,जैसे नखअरु केश उपजतेभीअरु अभाव भी हो जाते हैं,तैसे आत्माविषेजगत उपजताभी है, अरु लीनभी हो जाता है, जैसे नख अरु केशके उपजने काटनेविषे शरीर ज्योंका त्यों रहता है तैसे जगत्के उपजने अरु लीन होनेविषे आत्मा ज्योंका त्यों रहता है । हे रामजी ! यह जगत्उपजा नहीं, तिसविषे सत् क्या कहिये अरु असत् क्या कहिये, कल्पना क्या कहिये, अरु स्मृति क्या कहिये, अंतर क्या कहिये, अरु बाहर क्या कहिये, अद्वैत सत्ताविषे कल्पना कछु नहीं बनती यह अर्थ है, अरु जो तू कहै बाह्यतेअंतर स्मृति होती है परंतु अंतरते बाहर दृष्ट आती है, तो अंतर अनुभवकी अपेक्षा