पृष्ठ:योगवासिष्ठ भाषा (दूसरा भाग).pdf/८६४

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ब्रह्मगीतवर्णन-निर्वाणप्रकरण, उत्तराई ६:. (१७४५) परलोकविषे जो शरीर अपनेको देखता है, अरु तिस शरीरसाथ स्वर्ग नरकविषे सुख दुःख भोगता है,तिसका कारण कौन है उसका कारण कोऊ नहीं पायाजाता, अपनी चेतनताविषे संकल्पकी वासना जो दृढ हुई है। तिसके अनुसार शरीर भासता है,स्वर्गनरकेविचे सुख दुःख भासते हैं,अपर तौ कछु वस्तु नहीं, सब पदार्थ संकल्पके रचे हुये हैं, सो सब आत्मरूप हैं, जैसे आकाश व्योम शून्य एकहीं वस्तुके नाम हैं, कोऊ जगत् कहौ, कोऊ ब्रह्म कहौ, इनविषे भेद कछु नहीं, ऊरणेका नाम जगत कहता है, अऊरणेका नाम ब्रह्म है, जैसे वायुको चलने ठहरनेविषे भेद कछु नहीं, तैसे ब्रह्मको ऊरणे अफुरणे संवेदनका भेद कछु नहीं, जो सम्यक्रदर्शी हैं, तिनको सब जगत् ब्रह्मस्वरूप भासता है, तिस कारणते दोष किसीविषे नहीं रहता, जो बड़ा कष्ट आनि प्राप्त होता है; तौ भी खेदवाना नहीं होता, जैसे कोऊ पुरुष स्वप्नविषे युद्ध करता है, अरु उसको अपना जाग्रत स्वरूप चित्तमें आया, तब स्वप्नको स्वप्न जानत भया, तब युद्ध करता हैं, तो भी दुःख मिटि जाता है, तैसे जो पुरुष प्रमपदविषे जागा हैं, तिसकी सब क्रिया होती है; परंतु आपको अक्रिय जानता है ॥ हे रामजी। सब चेष्टा उसकी होती है, परंतु उसके निश्चयविषे क्रियाका अभिमान नहीं होता, जैसे नटुवा सब स्वांग धरता है, परंतु आपको स्वांगते रहित नटुवाही जानता है, अरु स्वांगक्रियाको असत् जानता है। काहेते कि, उसको अपना स्वरूप स्मरण है, तैसे ज्ञानवान् सब क्रियाको असत् जानता है । हे रामजी । जेते कछु पदार्थ भासते हैं, सो अजातजात हैं; उपजे कछु नहीं, जैसे स्वप्नविचे पदार्थ भासते हैं, परंतु उपजे कछु नहीं, अपना अनुभव इसप्रकार भासता है, तैसे यह जगत्के पदार्थ भी अनुभवरूप जान ॥ हे रामजी ! बहुत शास्त्र अरु वेद मैं तुझको किसनिमित्त सुनावौं अरु किसनिमित्त पढे, अरु जो वेदांत शास्त्र हैं, तिन सबका सिद्धांत यही है कि, वासनाते रहित होना, इसका नाम मोक्ष ई अरु वासनासहित हैं, तिसका नाम बंध है,अरु,वासना किसकी करिये, यह तौ सब सृष्टि अकारणरूप भ्रममात्र है, इसविषे क्या आस्था बढाइये, यह तौ स्वप्नके पर्वत हैं ॥ इति श्रीयोगवासिष्ठे निर्वाणप्रकरणे ब्रह्मगीतावर्णनं नाम द्विशताधिकैकषष्टितमः सर्गः ॥ २६१ ॥