पृष्ठ:योगवासिष्ठ भाषा (दूसरा भाग).pdf/८७६

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ब्राह्मणकथावर्णन-निर्वाणप्रकरण, उत्तराई ६. (१७५७) स्थान थे सो कहां गये, अरु बडे ऋषीश्वर मुनीश्वरके स्थान थे सो कहां गये १ हे साधो । यह क्या आश्चर्य हुआ, सो तुम कहौ, तब हमने कहा ॥ हे मुनीश्वर। हम नहीं जानते, हम तौ अब आये हैं, इसको तुमहीं जानडु, तब कहत भया, बडा आश्चर्य है । हे रामजी । ऐसे कहकर बहुरि ध्यानविषे स्थित हो गया, अरु व्यतीत वृत्तांतका ध्यान कार देखत भया, एक मुहूर्तपर्यत देखकर बहुर नेत्र खोलकर कहा, बडा आश्चर्य होय बीता है, तब हमने कहा ॥ हे भगवन् ! जो कछु वृत्तांत हुआ हो सो कृपा कारकै हमको कहौ, तब तपस्वीने कहा ॥ हे साधो । वहां एक समय वागीश्वरी भवानी इस वनविषे आती भई, तिसने एक हरनेका स्थान बनाया, तिसविषे शिवकी अर्ध शरीर गौरी रहत भई, अरु उस स्थानके निकट बहुत सुंदर वृक्ष लगाये, कल्पवृक्ष, तमालवृक्ष,कदंब वृक्ष इत्यादिक बहुत लगाये, अरु कमल फूल आदि लेकर सर्व ऋतुक फूल लगाये,बावलियां, बगीचे रमणीय रचे, अरु कोयल भंवरे तोते मोर बगले इनते आदि लेकर जो पक्षी हैं, सो विश्राम करें, अरु शब्द करें अरु निकट ऋषीश्वर मुनीश्वर तपस्वीकी कुटिया मानौ इंद्रका नंदनवन है, अरु निकट गांवकी वस्ती बहुत आनि हुई ॥ हे साधो । यहां आठ ब्राह्मण तपके निमित्त आये थे, पद्मास यहाँ रह गये हैं, बहुत सुंदर स्थान है ॥ इति श्रीयोगवासिष्ठे निर्वाणप्रकरणे ब्रह्मगीतागौरीवागवर्णनं नाम द्विशताधिकचतुःषष्टितमः सर्गः ॥ २६४ ॥ दिशताधिकपंचषष्टितमः सर्गः २६५. ब्राह्मणकथावर्णनम् ।। कदंब उवाच ॥ हे साधो ! मुझ सों पूछा तौ अपना वृत्तांत मैं कहता हौं, मैं मालव देशका राजा था, अरु चिरपर्यंत खेदते रहित मैं विषयभोग भोगे हैं, बहुारे मुझको यह विचार आनि उपजा कि. यह संसार स्वप्नमात्र है, इसको सव जान स्थित होना मूर्खता है, एती आयुर्बल मेरी बीति