पृष्ठ:योगवासिष्ठ भाषा (दूसरा भाग).pdf/९०६

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विद्यावादबोधोपदेशवर्णन–निर्वाणप्रकरण, उत्तराई ६! { १७८७) किसको कहते हैं, अरु केवलज्ञान किसको कहते हैं।वसिष्ठ उवाच॥ हे। राघव! चैत्य जो है दृश्य, तिसते रहित जो चिन्मात्र है, तिसको तू केवलबोध जान, तिसविषे वाणीकी गम नहीं, इसी प्रकार अचेत चिन्मात्र सत्ताको ज्योंका त्यों जानना सोई केवल ज्ञान है । हे भगवन्! केवलबोध अचेत चिन्मात्र हैं तौ चैत्य जो हैदृश्य जगभ्रम, सो तिसविषे क्यों भासता है । वसिष्ठ उवाच ॥ हे रामजी चिन्मात्र जो दृष्टारूप है,तिसविषे संवेदन जो है जानना, सोई चैतता कहिये,जब चैतता फुरती है, तब वही चैतता चैत्यरूप दृश्य हो भासती हैं, जैसे स्पंदते रहित वायु निर्लक्षणरूप होती है, अरु जब फुरती है,स्पंदरूप होती हैं, तब स्पर्शक रिकै भासती है, तैसे संवेदनकरिकै दृश्य भासती है, सो वही संवेदन दृश्य हो भासती है ॥ राम उवाच ॥ हे भगवन् ! जो द्रष्टा दृश्यरूप भासता है, तो दृश्य बाह्य क्यों भासता है॥ वसिष्ठ उवाच ।। हे रामजी! इसी कारण भ्रम कहा है, जो है अपने अंतर अरु बाह्य भासती है,जैसे स्वप्नकी सृष्टि अपनेही अंतर होती है,वास्तवते न अंतर है, न बाहर हैं, आत्मसत्ताही अपने आपविषे स्थित है,तैसे अब भी ज्योंकी त्यों स्थित है, अंतर अरु बाह्य भ्रमकारकै भासती है ॥ राम उवाच ॥ हे भगवन् । जो आत्मसत्ता ज्योंकी त्यों है, अरु दृश्यभ्रमकरि भासती है, तौ शशेके शृंग भी भ्रममात्र हैं, वह क्यों नहीं भासते, अहं अरु त्वं क्यों भासते, भूतकी चेष्टा प्रत्यक्ष भासती है । वसिष्ठ उवाच ।। हे रामजी । अहं त्वं आदिक जगत् भी कल्पनामात्र है, जैसे शशेके सिंग कल्पनामात्र, जैसे आकाशविषे दूसरा चंद्रमा भ्रमकार भासता है, जैसे यह जगत् भी भ्रममात्र है, जैसे मृगतृष्णाका जल अरु संकल्पनगर भ्रममात्र है, तैसे यह जगत् भ्रममात्र है, किसी कारणकार नहीं उपजा, जैसे स्वप्नविषे शशके शृंग नहीं भासते, अपर जगत् भासताहै, तैसे यह भ्रमहै ॥ राम उवाच॥ हे मुनीश्वर ! भूत भविष्य वर्त्तमान तीनकालविषेजगत् स्मृति अनुभकारि जानता है, अरु कारण कार्यभाव पाता है। तुम भ्रममात्र कैसे कहते हौ। वसिष्ठ उवाच ॥ हे रामजी! मैं कहता हौं कि कारण कारकै कार्य होता है, सो तो सतु होता है, ताते तू कहु जगत्का कारण क्याहै, जैसे बीजते