पृष्ठ:योगिराज श्रीकृष्ण.djvu/१८

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16/ योगिराज श्रीकृष्ण
 


तथा अनुभववृद्ध भीष्म ने जिसकी चरित्र-प्रशस्ति का गान करते हुए कहा-

वेद वेदांग विज्ञानं बलं चाप्यधिक तथा।

नृणां लोके हि कोन्यो ऽस्ति विशिष्टः केशवाट्टते॥

दानं दाक्ष्यं श्रुतं शौर्यं हीः कीर्तिर्बुद्धिरुत्तमां।

सन्नति श्रोर्धृतिस्तुष्टिः पुष्टिश्च नियत्ताच्युते॥

ऋत्विग्-गुरुस्तथाऽऽचार्यः स्नातको नृपतिःप्रियः।

सर्वमेतदृहृषी केशस्तस्मादभ्यर्चितोऽच्युत॥

सभापर्व 38/19.20.22


वेद और वेदांगो का उन्हें सम्पूर्ण रीति से ज्ञान है, बल में भी वे किसी से कम नहीं हैं। इस मनुष्यलोक में कृष्ण से भिन्न दूसरा कौन विशिष्ट गुणों का आगार होगा। दान-दाक्षिण्य (शिष्टता), शास्त्रज्ञान, वीरता, लज्जाशीलता, कीर्ति, उत्तम बुद्धि, विनम्रता, श्री, धृति (धैर्य); तुष्टि आदि सभी गुण तो अच्युत कृष्ण में हैं। एक साथ ही वे ऋत्विक् (यज्ञकर्ता), गुरु, आचार्य, स्नातक, राजा सदृश हमारे प्रिय हैं। इसीलिए हृषीकेश भगवान् कृष्ण हमारे द्वारा सम्मान के पात्र हैं।

कृष्ण के इस महनीय, निष्पाप तथा निष्कलुष चरित्र की ओर पुन: मानव जाति का ध्यान आकृष्ट करने का श्रेय उन्नीसवीं सदी के महान् धर्माचार्य तथा भारतीय नवजागरण के ज्योतिपुरुष स्वामी दयानन्द को है। उन्होंने स्वरचित ग्रन्थ सत्यार्थप्रकाश में कृष्णचरित की श्लाघा करते हुए लिखा--"देखो, श्रीकृष्ण का इतिहास महाभारत मे अत्युत्तम है। उनका गुण-कर्म-स्वभाव आप्त पुरुषों के सदृश है जिसमे कोई अधर्म का आचरण श्रीकृष्ण ने जन्म से मरण पर्यन्त बुरा काम कुछ भी किया हो, ऐसा नहीं लिखा।" स्वामी दयानन्द के ही समकालीन बँगला के साहित्य- सम्राट बंकिमचन्द्र चट्टोपाध्याय ने 1886 में महाभारत आधार बनाकर कृष्णचरित्र शीर्षक एक विवेचनामूलक जीवनचरित लिखा जिसमें भारतोक्त कृष्ण के इतिवृत्त को ही प्रामाणिक तथा विश्वसनीय मानकर पुराणो में वर्णित कृष्ण-प्रसंग को असंगत, बुद्धि तथा युक्ति विरुद्ध फलत. अमान्य ठहराया। कृष्णचरित के समग्र अनुशीलन के पश्चात् बंकिम जिस निष्कर्ष पर पहुँचे है उसे उन्हीं के शब्दों में प्रस्तुत किया जाना उचित है--"कृष्ण सर्वगुणसम्पन्न हैं। इनकी सब वृत्तियों का सर्वांग सुन्दर विकास हुआ है। ये सिंहासनासीन होकर भी उदासीन हैं, धनुर्धारी होकर भी धर्मवेत्ता हैं, राजा होकर भी पण्डित है, शक्तिमान् होकर भी प्रेममय हैं। यह वही आदर्श है जिससे युधिष्ठिर ने धर्म सीखा और स्वयं अर्जुन जिसका शिष्य हुआ। जिसके चरित्र के समान महामहिमामण्डित चरित्र मनुष्य-भाषा में कभी वर्णित नहीं हुआ।" (कृष्ण चरित्र, उपक्रमणिका)

महान् देशभक्त तथा भारत के स्वाधीनता संग्राम के अग्रणी नायक लाला लाजपतराय ने विगत शताब्दी के अन्त में कृष्णचरित का विश्लेषण करते हुए एक उपयोगी ग्रन्थ उर्दू मे 'योगिराज महात्मा श्रीकृष्ण का जीवनचरित्र' शीर्षक लिखा था। लालाजी का साहित्य मुख्य रूप से उर्दू तथा अंग्रेजी में ही लिखा गया था, परन्तु उनकी उर्दू अरबी तथा फारसी के क्लिष्ट एवं अप्रचलित शब्दों से लदी नहीं होती थी। उन्होने अपनी इस पुस्तक की भूमिका में उर्दू के उस