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54/ योगिराज श्रीकृष्ण
 


का विचार त्यागा और देवकी सहित वसुदेव को अपने घर जाने की आज्ञा दी। इस विषय मे सब पुराण एक मत है कि वसुदेव ने निज प्रतिज्ञा-पालन में अपने छः पुत्र कंस के हवाले कर दिये और कंस भी ऐसा निर्दयी था कि उसने इन छहों को एक-एक कर मरवा डाला

पर जब सातवीं बार देवकी ने गर्भ धारण किया तो पितृस्नेह के आगे उसका निज प्रतिज्ञा पालन का विचार डावाँडोल हो गया। किसी जाति या धर्म में इस बात की व्यवस्था नहीं है कि जो प्रतिज्ञा बलात् कराई जाये उसका उल्लंघन करने वाला पाप का भागी हो सकता है। दुष्ट कंस ने देवकी के पुत्रों का वध तो करा ही डाला था, वसुदेव के दूसरे पुत्रों को भी (जो दूसरी स्त्रियों से थे) मरवा डाला।

क्या किसी लेखनी मे शक्ति है कि उस पिता के अतिरिक्त संताप का चित्र खींच सके जिसके सम्मुख अपने ही बालकों का सिर काटा जाय? कौन पिता है जो ऐसी दशा में उनके प्राण की रक्षा की एक बार चेष्टा न करेगा? बच्चों की स्वाभाविक मृत्यु माता-पिता के जीवन को कष्टप्रद बना देती है। बहुतेरे ऐसे है जो अपने बच्चे की अकाल मृत्यु के संताप में पिघल पिघलकर जान गंवा देते हैं, या जीवन-भर शोकसागर में पड़े रहते हैं। पर यहाँ तो एक-दो की कौन कहे, छः के छः पुत्रों का उसके सामने वध हुआ। वसुदेव जी इस संताप से महादुःखी हो गए। इसको सहन करने की शक्ति समाप्त हो गई और उन्होंने दृढ प्रतिज्ञा कर ली कि जैसे भी होगा अब इस दुष्ट के हाथ से अपने बच्चों को बचाऊँगा। इस सातवें गर्भ की रक्षा के विषय में पुराण में लिखा है कि देवताओं ने देवकी के गर्भ से बच्या निकाल रोहिणी के गर्भ में डाल दिया (रोहिणी वसुदेव की दूसरी पत्नी का नाम है) और यह बात प्रकट को गई कि देवकी का गर्भ नष्ट हो गया। इस कथन से दो परिणाम निकाल सकते हैं...

एक यह कि देवकी का गर्भ छिपाया गया और रोहिणी का गर्भवती होना प्रसिद्ध किया गया। रोहिणी गोकुल ग्राम में नन्द के घर रखी गई और देवकी के बच्चा उत्पन्न हुआ तो उम्मका तत्काल रोहिणी की गोद में रख यह प्रसिद्ध कर दिया गया कि देवकी का गर्भ नष्ट हो गया।

दूसरा यह कि वास्तव में बलराम, जो रोहणी के ही पुत्र थे और देवकी का सातवाँ गर्भ भय, चिन्ता या किसी अन्य कारण से नष्ट हो गया था। इससे यह परिणाम निकला कि जिस सातवे बच्चे की इस प्रकार गुप्त रीति से रक्षा की गई, वह बलराम था।

देवकी सातवीं बार गर्भवती हुई। इस पर तो पहले से पहरा बैठता था, पर इस बार पूरी रखवाली करने की आज्ञा हुई। एक सुरक्षित स्थान में बन्द कर उन पर पहरा-चौकी बैठा दिया>br> ____________________________________

1. इस विषय में पुराणों में बड़ा मतभेद है। कोई पुराण कहता है कि यह आकाशवाणी हुई कि इस लड़की की सतान के द्वारा तेरा वध होगा। अन्य लिखते है कि यह ध्वनि हुई कि आठवीं संतान से तेरा विनाश होगा। कोई इस अगमवाणी को नारद जी के सिर मढ़ते है। पुराणों में जहाँ की लड़ाई-झगड़े का काम लेना होता है वहाँ नारद जा की सहायता ट्रॅदी जाती है। साधारण बोलचाल में लड़ाई करने वाले व इधर की उधर पहुँचाने वाले को 'नारद मुनि कहते हैं। न जाने नारद जी को यह प्रमाण-पत्र किस कारण मिला, क्योकि नारद एक विख्यात शास्त्रकार तथा महर्षि का नाम है। पुराण के लेखक का शायद यह तात्पर्य है कि किसी दुराचारी ने राजा को यह कुमन्त्रणा दी थे जिसम कोई इसका वशज राज्याधिकार का दावा न करे। अथवा इनके राजकीय विषयों में विरोध न करे।