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पृष्ठ:योगिराज श्रीकृष्ण.djvu/५६

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योगिराज श्रीकृष्ण /55
 


गया और ऐसा प्रबन्ध किया गया जिसमें किसी प्रकार से भी वह अपने बालक को न बचा सके। ऐसा मालूम होता है कि इस बालक के वध के लिए कंस की ओर से जैसा उत्तम प्रबन्ध किया गया था वैसा ही दूसरे पक्ष वाले इसके बचाने में सन्नद्ध थे।

इधर कंस ने पूरे तौर पर पहरा-चौकी बिठा दिया और ऐसा प्रबन्ध किया कि बच्चा किसी प्रकार वचने न पावे। उधर वसुदेव और उनके मित्रों ने बच्चे के बचाने के लिए पूरी-पूरी युक्ति की, जिसका परिणाम यह हुआ कि दुष्ट कंस की सारी युक्तियाँ निष्फल हुई और वसुदेव और उसके मित्र अपने यत्न में सफल हुए। जिस रात्रि में कृष्ण का जन्म हुआ उसी रात्रि को उन्हे राजमहल से निकालकर गोकुल पहुँचा दिया और वहाँ से नन्द की नवजात बालिका को लाकर देवकी के साथ शय्या पर लिटा दिया।

सारांश यह कि भाद्रपद के कृष्ण पक्ष की आठवीं तिथि को मथुरा की राजधानी में कृष्णचन्द्र ने जन्म लिया। रात अँधेरी थी। मेघो का भयंकर शब्द मानों पापियों का हृदय कम्पायमान कर रहा था। आँधी इतने वेग से चल रही थी मानो वह पृथ्वी तल से इमारतो को उखाड़कर फेक देगी और वर्षा ऐसी हो रही थी मानों वह प्रलय करके ही साँस लेगी। यमुना बाढ़ पर थी। जिस रात्रि कृष्ण ने जन्म लिया वह रात्रि वास्तव में भयंकर थी क्योंकि प्रकृति देवी क्रोध से विकट रूप धारण किये हुए थी।

बच्चे के जन्म लेते ही वसुदेव उसे कपड़े में लपेट बड़ी सावधानी से महल से बाहर निकले। कहते है कि उस रात्रि को सारे पहरे वाले योगनिद्रा से ऐसे मतवाले हो गये कि उन्हें इस बात की सुध न रही कि कौन महल से निकलता है और कौन अन्दर जाता है। पर इसमे सदेह नहीं कि या तो पहरे वालों की असावधानी से वसुदेव को बाहर निकल आने का अवसर मिला अथवा पहरे वाले जान-बूझकर वसुदेव का हित समझकर मचल गए हों। तात्पर्य यह कि वसुदेव कृष्ण को छिपाकर रनवास से बाहर निकल आये। यह समय आधी रात का था। बाहर निकलते ही शेषनाग ने अपने फण से कृष्ण पर छन लगा दिया और इस प्रकार उन्हें भीगने से बचा लिया। अब यमुना में पैर रखा तो आँधी बंद हो गई, आकाश मण्डल स्वच्छ होने लगा और तारे चमकने लगे। नदी-नालों के जल का वेग कुछ कम हो गया। झील तथा सरोवर
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1. भागवत पुराण में इस विषय में एक कथा है-जिन दिनो देवकी जी गर्भ से थी तो वे एक दिन यमुना में स्नान करने गई। वहाँ उनका नंद की पत्नी यशोदा से वार्तालाप हुआ। आपस में जब दल को चर्चा चली तो यशोदा ने देवका को वचन दिया कि मैं तेरे बालक की रक्षा करूंगी, अपना बालक बदले में तुम्हें दे दूंगी प्रिय पाठक! यह बात भारत के इतिहास में कुछ नई नही है। ऐसे दृष्टान्त बहुत मिलते हैं जिनमें राजकुमारों को इस तरह रक्षा की गई है और दूसरी स्त्रियों ने उनके हेतु अपने प्यारे पुत्रो का बलिदान दिया है। महाराणा उदयसिंह (चित्तौड़) इसी तरह नचाए गए। उनकी दासी ने कुँवर को फूल के टोकरे में रखकर दुर्ग से बाहर कर दिया और उसकी जगह पालने पर अपना लड़का लिटा दिया। जब उदयसिंह के शत्रु उसको ढूंढते हुए वहाँ आये तो उसने रोते हुए पालने की ओर इशारा कर दिया जिस पर शत्रुओं ने उस लड़के को उदयासिंह समझकर एक हो कटार से उसका वध कर दिया।

2. नाग एक जगली जाति का नाम था जो यमुना के आसपास रहती थी। इस पुस्तक में आगे भी कई स्थान पर इसका वर्णन आयेगा। इतिहास में भी इस जाति का वर्णन आया है। इससे अनुमान किया जा सकता है कि इस जाति का कोई सरदार वसुदेव का सहायक बन गया हो।